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तपने से पहले किये हुये चारों घातिया कर्मों का अपने पुरुषार्थ मे, निर्जरा (नाश) करने पर आत्मा के कर्मों द्वारा छुपे हुये स्वाभाविक गुण प्रकट हो कर यही संसारी जीव-आत्मा अनन्तानन्त ज्ञान, दर्शन, बल और सुख-शान्ति का धारी परमात्मा हो जाता है
और बाकी चारों अघातिया कर्मों से भी मुक्त होने पर मोक्ष (SALVATION) प्राप्त करके अविनाशी सुख-शान्ति के पालने वाला सिद्ध भगवान् हो जाता है।
वी-विहार और धर्म-प्रचार "भ० महावीर का यह विहार काल ही उनका तीर्थ प्रवचन काल है जिस के कारण वह तीर्थङ्कर' कहलाये"।
-श्री स्वामी समन्तभद्राचार्य : स्वयंभूस्तोत्र मगधदेश की राजधानी राजग्रह में भगवान महावीर का समवशरण कई बार आया, जहां के महाराजा श्रेणिक बिम्बसार ने बड़े उत्साह से भक्तिपूर्वक उनका स्वागत किया । महाशतक और विजय आदि अनेकों ने श्रावक व्रत लिये, अभयकुमार और इस के मित्र आदिक (Idrik) ने जो ईरान के राजकुमार थे, भगवान् महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर जैन मुनि हो गये थे। लगभग ५०० यवन भी वीर प्रेमी हो गये थे । फणिक (Phoenecia) देश के वाणिक नाम के सेठ ने तो जैन मुनि होकर' उसी जन्म से मोक्ष प्राप्त किया।
१. Tirh is a fordable passage accross a sea. Because the
Tirthankarna discover and establish sucb pagsaga accross the sea of 'Sansar', They are given title of Tirthankara.
-What is Jainism? P. 47. २. Dictionary of Jain Byography (Arrah) P. II & 92. ३.५ भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० १३५, १३० ।
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