________________
होता है मैं ही बड़ी हूँ। तीसरी बीच वाली अंगुली बोली कि प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या? तीनों बराबर. खड़ी हो जाओ और देख लो, कि मैं ही बड़ी हूँ : चौथी ने कहा कि बड़ी तो मैं ही हूँ जो संसार के तमाम मंगलकारी काम करती हूँ । विवाह में तिलक में ही करती हूं, अंगूठी मुझे पहनाई जाती है, राजतिलक मैं ही करती हूं। पांचवी कन्नो अंगुली बोली कि तुम चारों मेरे आगे मस्तक झुकाती हो, खाना, कपड़े पहिनना, लिखना आदि कोई काम करो मेरे आगे झुके बगैर काम नही चलता । तुम्हें कोई मारे तो मैं बचाती हूं। किसो के मुक्का मारना हो तो सब से पहले मुझे याद किया जाता है । मैं ही बड़ी हूं । पाँचों का विरोध बढ़ गया तो स्याद्वादी ने ही उसे निबटाया कि अपनी २ अपेक्षा से तुम बड़ी भी हो, छोटी भी हो बड़ी तथा छोटी दोनों भी हो।
ऋग्वेद,' विष्णुपुराण' महाभारत में भी स्याद्वाद का कथन है। महर्षि पातञ्जति ने भी स्याद्वाद की मान्यता की है । परन्तु "जैनधर्म में अहिंसा तत्व जितना रस्य है उससे कहीं अधिक सुन्दर स्याद्वाद-सिद्धान्त है"५ "स्याद्वाद के बिना कोई वैज्ञानिक तथा दार्शनिक खोज सफल नहीं हो सकती"। "यह तो जैनधर्म की महत्त्वपूर्ण घोषणा का फल है" । "इससे सर्व सत्य का द्वार १ इन्द्र मित्रं वरुणमाग्नेमाहुरथो दिव्यः स मुपर्णो गरुत्मान् । एकं सद्विप्रा बहुधा वदत्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहुः ॥
-ऋग्वेद मंडल १ सूक्त १६४ मंत्र ४६ । २ वस्त्वेकमेव दुःखाय सुखायेा जमाय च ।
कोपाय च यतस्तस्माद् वस्तु वस्त्वात्मकं कुतः ॥-विष्णुपुराण ३ सर्व संशयितमति स्याद्वादिनः सप्तभंगीन यज्ञाः ।
-महाभारत अ० २, पाद २ श्लोक ३३-३६ । ४ 'मीमांसा श्लोकवार्तिक' पृष्ठ ६१६ श्लो९ २१, २२, २३।। ५ आचार्य आनन्दशङ्कर ध्रव प्रोवाइसचांसलर हिन्दूयूनिवर्सिटी जैनदर्शन वर्ष२ १८१ ६-७ गंगाप्रसाद मेहता : जैनदर्शन वर्ष २, पृ० १८१ ।
३६० ]
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com