________________
राग-द्वेष आदि कषायों से पीड़ित तथा इष्ट-वियोग और अनिष्टसंयोग से मूर्छित हैं, उन के लिये सम्यग्दर्शन से अधिक कल्याणकारी और कोई औषधि नहीं । जो ज्ञान और चारित्र के पालने में प्रसिद्ध हुए हैं, वे भी सम्यग्दर्शन के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सके ? सम्यग्दर्शन के भाव से पशु भी मानव है और उस के अभाव से मानव भी पशु है । जितने समय सम्यग्दर्शन रहता है उतने समय कर्मों का बंध नहीं हो सकता। सम्यग्दर्शन रूपी भूमि में सुख का बीज तो बिना बोये हो उग जाता है, परन्तु जैसे बंजर भूमि में बीज गिरने पर भी फल की प्राप्ति नहीं होती, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन रूपी भूमि पर दुःख का बीज गिर जाने पर भी कदाचित् फल नहीं दे सकता । यदि एक क्षण मात्र भी सम्यग्दर्शन प्रगट कर लिया जाय तो मुक्ति हुए बिना नहीं रह सकती। सम्यग्दर्शन वाले जीव का ज्ञान सम्यग्ज्ञान, चारित्र सम्यग्चारित्र स्वयं हो जाता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र तीनों का समूह रत्नत्रय है और रत्नत्रय मोक्ष मार्ग है। इस लिये सम्यग्दर्शन एक बार भी धारण हो जाये तो इच्छा न होने पर भी यदि हो सका, तो उसी भव में; अन्यथा अधिक से अधिक १५ भव में मोक्ष अवश्य प्राप्त कर लेता है'। ___ पदार्थ के समस्त अङ्गों को सम्पूर्णरूप से जानने के लिये जीव का अनेकान्तवादी अथवा स्याद्वादी और आत्मा के स्वाभाविकगुणों को ढकनेवाले कर्मरूपी परदे को हटाने के लिये अहिंसावादी होना जरूरी है, अहिंसा को पूर्णरूप से संसारी पदार्थों और उनकी मोह-ममता के त्यागी निग्रंथ नग्न साधु ही भली भांति पाल सकते हैं । इसलिये जो अपनी आत्मा के गुणों को प्रगट करने तथा अविनाशी सुख-शान्ति की प्राप्ति के अभिलाषी हैं, उन्हें अवश्य निज १. सम्यग्दर्शन जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट (सोनागढ़ सौराष्ट्र) भा० २, पृ० १० ।
[३४६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com