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बताई'। मनुष्यत्व का ध्येय ही सर्वज्ञता है और यह गुण वीरस्वामी ने अपने मनुष्य जीवन में अपने पुरुषार्थ से स्वयं प्राप्त करके संसार को बता दिया कि वह भी सर्वज्ञता प्राप्त कर सकते हैं । महात्मा बुद्ध, महावीर भगवान के समकालीन थे । बावजूद प्रतिद्वंदी नेता (Rival Reformer) होने के, उन्होंने भी वीर स्वामी का सर्वज्ञ
और सर्वदर्शी होना स्वीकार किया है । मज्झिमनिकाय और न्यायविन्दु नाम के प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थों में भी श्री वर्द्धमान महावीर को सर्वत्र, स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है । जिनके बीच में महावीर स्वामी रह रहे थे, वे महात्मा बुद्ध से आकर कहते थे कि भगवान महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और एक अनुपम नेता है', वे अनुभवी मार्ग प्रदर्शक हैं, बहुप्रख्यात' हैं, तत्ववेत्ता'' हैं, जनता द्वारा सम्मानित'' हैं और साथ ही महात्मा,बुद्ध से पूछते थे कि श्रापको भी क्या सर्वज्ञ और सर्वदर्शी कहा जा सकता है ? महात्मा बुद्ध ने कहा कि मुझे सर्वज्ञ कहना सत्य नहीं है । मैं १. Jainism raises man to Godhood. This conception is
more rational and scientific than ideal of extra cosmic God siting on thigh and guiding human affairs.
-Prof. Dr. M. Hafiz Syed : VOA. Vol III P.9. 2. No other religion is in a position to furnish a list of
men, who have attained to God-hood by following its
teachings, than Jainisnu. -Change of Heart P.21. ३. Nattaputra (Lord Mahavira) is all-knowing and all seeing possessing an infinite Knowledge.
-Majhima Nikaya, I. P.92 93. ४. इसी ग्रन्थ का पृ० ४८ । ५-६. अंगुत्तर निकाय (P.T. S.) भा० १ पृ० १६०। ७-८. संयुक्त निकाय, भा० १ पृ० ६१-६४ ।। ६-११. Diologue of Buddha, P. 66. . १०-१३. Lite of Buddha. P. 15.
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