________________
हृदय हो । महान् तपस्वियों का तप भी तो स्वर्ग के विषय-भोगों की लालसा के कारण ही होता है, तो फिर आप कैसे तपस्वी हो जो स्वर्ग की देवाङ्गनाओं तक को भी अङ्गीकार नहीं करते"। इस पर भी श्री वर्द्धमान महावीर का मन जरा भी चलायमान होता न देख, स्वर्ग की देवाङ्गनाएँ आश्चर्य में पड़ गई । उन्होंने बड़ी विनय और भक्ति के साथ श्री वर्द्धमान महावीर स्वामी को नमस्कार करके कहा कि यदि संसार में कोई सच्चा 'सुवीर' और परम तपस्वी है तो महावीर स्वामी श्राप ही हैं ।
वीर-सर्वज्ञता Outside the town Jrmbhika- Grama, on the Northern bank of the river Rajupalika in the field of the house holder Samaga, under a Sala tree, in deep meditation, Lord Mahavira reached the complete and full, the unobstructed, unimpeded, infinite and Supreme, best knowledge and ntuitation, called KEVALA.
-Dr. Bool Chand : Lord Mahavira. (JCRS. 2) p. 44.
विहार प्रान्त के ज़म्भकग्राम' के निकट ऋजुकूला नदी के किनारे शाल के वृक्ष के नीचे एक पत्थर की चट्टान पर पद्मासन से वर्द्धमान महावीर शुक्ल ध्यान में लीन थे। १२ वर्ष ५ महीने
और १५ दिन के कठोर तप से उनके ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय और अन्तराय चारोंघातिया कर्म इस तरह से नष्ट होगये, १. वर्तमान खोज से यह स्थान समेद शिखर से २५-३० मील दूर आज कल
झरिया नगर के निकट होना अनुमानित किया गया । झरिया जम्भक है और बाराकर नदी वीर समय की ऋजुकूला नदी है।।
-कामताप्रसाद : म० महावीर पृ० १०८ । २. पं० कैलाशचन्द : जैनधर्म (दि. जैन सङ्घ चोरासी), पृ० २३ ।
[३२६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com