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होगये और जोश में आकर उसने त्रिपृष्ट पर अपना चक्र चला दिया। पुण्योदय से वह चक्र त्रिपृष्ट कुमार की दाहिनी भुजा पर
आ विराजमान हुआ और उसने वह चक्ररत्न अश्वग्रीव पर चला दिया जिस के कारण अश्वग्रीव प्राणरहित हो गया। उसकी फौज भाग गई, त्रिपृष्ट कुमार तीनों खण्ड का स्वामी नारायण हो गया । ___ अफ्यून का नशा, भङ्ग का नशा, शराब का नशा तो संसार बुरा जानता ही है, किन्तु दौलत तथा हकूमत का नशा इन सब में अधिक बुरा है । तीनों खण्ड का राज्य प्राप्त होने पर त्रिपृष्ट आपे से बाहर होगया । गाना सुनने में उसकी अधिक रुचि थी। उसने शय्यापाल को आज्ञा दे रखी थी कि जब तक वह जागता रहे गाना होता रहे और जब उसको नींद आ जाये गाना बन्द करवादे । शय्यापाल को भी गाने में आनन्द आने लगा। एक दिन की बात है कि त्रिपृष्ट सो गया परन्तु शय्यापाल गाने में इतना मस्त हो गया कि त्रिपृष्ट के सो जाने पर भी उसने गाना बन्द नहीं करवाया । जब त्रिपृष्ट जागा तो उस समय तक गाना होते देख कर वह आग बबूला होगया और उसने शय्यापाल के कानों में गर्म शीशा भरवा दिया। विषय भोग में फँसे रहने के कारण वह मर कर महातमप्रभा नाम के सातवें नरक में गया जहाँ इतने महादुख उठाने पड़े कि जिन को सुन कर हृदय कांप उठता है ।
पशु-गति नरकों के महादुःख वर्षों तक सहन करने के बाद मुझे इसी भारतवर्ष में गङ्गा नदी के किनारे वनिसिंह के पहाड़ों में शेर की योनि प्राप्त हुई। यहां भी अनेक जीवों की हत्या करने के कारण
१. भ० महावीर का धर्म उपदेश, खंड २ । २७८ ]
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