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मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, घृणा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, मिथ्यात्व, चौदह अंतरङ्ग, समस्त २४ परिग्रहों का त्याग करके २६ साल तीन महीने २० दिन' की भरी जवानी में सम्पूर्ण राज-पाट ठुकराकर और इन्द्रिय-सुखों से मुह मोड़कर ने आत्मोत्कर्ष को साधने और दुखियों की सच्ची सेवा करने के लिये श्री वदमान महावीर ने ईसामसी सन् से ५६६ वर्ष पूर्व मंगसिर बढ़ी दशमी के दिन संध्या समय चन्द्रप्रभा नाम की पालकी में बैठ कर ज्ञातखण्ड नाम के बन में अपने सम्पूर्ण वस्त्र, आभूषण आदि उतार कर नग्न दिगम्बर होकर जैन साधु
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१. धवल और जय धवल तथा भगवान् महावीर और उनका समय, पृ० १३ ।
२. अनेकान्त, वर्ष ११, पृ० ६६-६६ ।
३-४. पं० खूबचन्द शास्त्री : महावीर चरित्र (सुरत) पृ० २५७ ।
५. Mahavira discarded cloth.
—Illustrated Weekly. ( March 22, 1953 ) P. 16. (ii) विस्तार तथा नग्नता की विशेषता के लिए 'बाइस परिषयजय' में ननता नाम की छठी परिषद फुटनोट, खण्ड २ ।
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(iii) श्वेताम्बरीय ' कल्पसूत्र' में कथन है कि यद्यपि भ० महावीर दिगम्बर वेष में रहे थे, परन्तु इन्द्र का दिया हुआ 'देवदृष्य' वस्त्र धारण करते थे । दीक्षा के दूसरे वर्ष में उन्होंने उस का भी त्याग कर दिया था और वे अचेलक (नग्न) हो गए थे। इस पर पं० नाथूराम जी प्रेमी लिखते हैं । "भगवान् के समयवर्ती श्रजीवक आदि सम्प्रदाय के साधु भी नग्न ही रहते थे, पीछे जब दिगम्बरी वृत्ति साधुओं के लिए कठिन प्रतीत होने लगी होगी और देश कालानुसार उन के लिए वस्त्र रखने का विधान किया गया होगा. तब यह 'देवदृष्य' की कल्पना की गई होगी । भगवान् रहते थे नग्न, पर लोगों को वस्त्र सहित ही दिखलाई देते थे, श्वेताम्बर सम्प्रदाय के इस अतिशय का फलितार्थं यही है कि भगवान् नग्न रहते थे ।" (जैन हितैषी बम्बई भा० १३ )
- भ० महावीर (कामताप्रसाद) पृ० ८६ ।
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