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शब्दों में इतना शोर किया कि मनुष्य तो क्या पशु तक भी काँप उठे । वीर स्वामी पर अपना कुछ प्रभाव न देख कर उसने इतनी शक्ति से चिल्लाना, चिंघाड़ना और गरजना आरम्भ कर दिया कि दूर-दूर के जीव भयभीत होकर भागने लगे।
अपना कार्य सिद्ध न होता देख कर रुद्र ने अपनी मायामयी शक्ति से महा भयानक भीलों की फौज बनाई जो नङ्गी तलवारें हाथ में लेकर डराती और धमकाती हुई वीर स्वामी के चारों तरफ ऊधम मचाने लगी। इस पर भी वीर स्वामी को चलायमान होता न देख, उसने महाभयानक शेरों, चित्तों और भगेरों की डरावनी सेना से इतना अधिक घमसान मिचवाया कि समस्त श्मशान भूमि दहल गई । परन्तु फिर भी वीर ग्वामी को बिना किसी खेद के प्रसन्न मुख ध्यान में मग्न देख कर रुद्र के छक्के छूट गए। उसने हिम्मत बांध कर इस कदर गर्द गुब्बार और मिट्टी बरसाई कि वीर स्वामी नीचे से ऊपर तक मिट्टी में दब गए । वीर स्वामो को फिर भी ध्यान से न हटा देख इतनी वर्षा बरसाई कि तमाम श्मशान पानी ही पानी होगया और ऐमी तेज हवा चलाई कि वृक्ष तक जड़ से उखड़ कर गिरने लगे। वीर स्वामी को विशाल पर्वत के समान निरन्तर तप में लीन देख, वह
आश्चर्य करने लगा कि यह मनुष्य है या देवता ? अपनी कमजोरी पर क्रोध करते हुए रुद्र ने मायामयी से अनेक विष भरे सर्प, बिच्छू , कानखजूरे अादि उनके नग्न शरीर से चिपटा दिये, परन्तु वीर स्वामी ने तो पहले से ही अपने शरीर से मोह हटा रा था, जब चण्डकौशिक जैसा भयानक अजगरों का सम्राट ही उनके तप को न डिगा सका तो भला इन सों, बिच्छुओं, कानखजूरों में क्या शक्ति थी कि वे वीर स्वामी के ध्यान को भङ्ग कर सकें? वीर तो महावीर थे, रुद्र इतने भयानक उपसर्गों पर
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