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भी वीर स्वामी की धीरता, गम्भीरता, वीरता, शान्त मुद्रा और सहनशक्ति को देख कर विचार करने लगा कि वीर स्वामी में मेरी मायामयो शक्ति को पछाड़ने की अद्भुत शक्ति होने पर भी मुझे परीक्षा का पूरा अवसर दिया । मनुष्य तो क्या देवताओं की भी मजाल न थी कि मेरे अत्याचारों के सामने ठहर सकें। मैंने ऐसे महान् तपस्वी और आत्मिक वीर को बिना कारण कष्ट देकर अपनी नरक की आयु बांध ली, उसने विनयपूर्वक भक्ति से वीर स्वामी को नमस्कार किया और कहा कि इन्द्र महाराज के शब्द वास्तव में सत्य हैं । वीर स्वामी वीर ही नहीं, बल्कि 'अतिवीर' हैं।
देवाङ्गनाओं द्वारा वीर की परीक्षा हर प्रकार की जांच में पूरा उतरने पर रुद्र ने श्री वर्द्धमान महावीर के तप की स्वर्ग लोक में बड़ी प्रशंसा की तो देवाङ्गनाएं कहने लगीं-"आपने वीर स्वामी पर रेत, मिट्टी आग, पानी बरसा कर अनेक प्रकार के ऐसे महा भयानक उपसर्ग किये कि जिन को सहन करने वाले का तो कहना ही क्या ? सुनने वाले का हृदय भी कांप जाये, परन्तु आपने यह विचार नहीं किया कि तपस्वी अपने शरीर से मोह-ममता नहीं रखते । तप के प्रभाव से उपसर्ग के समय उनका हृदय बज्र के समान कठोर हो जाता है
और अपने पिछले पाप कर्मों का फल जान कर उनकी निजेना के लिये वे अधिक से अधिक भयानक उपसर्गों को भी आनन्द के साथ सहन कर लेते हैं । ऐसे महान तपस्वी तो केवल काम वासना
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Rudra caused all sort of sufferings to Mahavira, which He bore with unflincbing courago, peace of mind and imme. nee love. His forbearance appealed to Rudra, who fell in His feet, begged pardon for his misdeed and called Him by name ATI VIRA. -Jai Dhawle, 96. P. 72.
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