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के मोटे किल्ले महावीर स्वामी के कानों में ठोक दिये । जब हमारे एक सुई चुभने से महान दुःख होता है तो वीर स्वामी को कितना कष्ट हुआ होगा ? नारायण पद में शैयापाल के कानों में गर्म गर्म शीशा भरवाया था तो आज शैयापाल के जीव ने ग्वाले की योनि में अपना पिछला कर्जा चुकाया। सत्य है तीर्थकरों तक को भी कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
देवों द्वारा वीर-तप की परीक्षा __ श्री वर्द्धमान महावीर की कठोर तपस्या से केवल मर्त्यलोक के जीव ही नहीं, बल्कि स्वर्गलोक के देवी-देवता भी दाँतों तले अंगुली दबाते थे । एक दिन इन्द्र महाराज की सभा में वीर स्वामी की तपस्या की प्रशंसा हो रही थी, कि भव नाम के एक रुद्र देव को विश्वास न हुआ कि पृथ्वी के मनुष्यों में इतनी अधिक शक्ति, शान्ति, स्वभाव-गम्भीरता हो । उसने इन्द्र महाराज से कहा कि जितनी शक्ति आपने वीर स्वामी में बताई है, उतनी तो हम स्वर्ग के देवताओं में भी नहीं। यदि आज्ञा दो तो परीक्षा करके अपना भ्रम मिटा लू। इन्द्र महाराज ने स्वीकारता दे दी। ___ श्री वर्द्धमान महावीर उज्जैन नगरी के बाहर अतिमुक्तक नाम की श्मशान भूमि में प्रतिमा योग धारण किये नदी के किनारे तप में मग्न थे। रुद्र ने अपने अवधि ज्ञान से विचार करके कि महावीर स्वामी इस समय कहाँ हैं ? उसी श्मशान भूमि में आगया । रात्रि का समय, सुनसान और भयानक स्थान, सर्दी की ऋतु, नदी के किनारे प्रसन्न मुख श्री महावीर स्वामी को तप में लीन देख कर रुद्र आश्चर्य में पड़ गया। उसने अपनी देव-शक्ति से श्मशान भूमि को अधिक भयानक वना कर अपने दांत बाहर निकाल, माथे पर सींग लगा, आंखें लाल कर बहुत भयानक ३२४ ]
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