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१४. याचना परीषह-अधिक से अधिक कष्ट, भूख प्बास होने पर भी श्री वर्द्धमान महावीर किसी से कोई पदार्थ, मांगना तो एक बड़ी बात है, मांगने की इच्छा तक भी न करते थे। १५. अलाभ परीषह-अनेक बार नगरी में आहार निमित्त जाने पर भी भोजनादि का लाभ विधि-अनुसार न हुआ तो अन्तराय कर्म रूपी कर्जे की अदायगी जान कर खेद तक न करते थे। १६. रोग परीषह-जहां हम थोड़े से भी रोग हो जाने पर महा दुःखी हो जाते हैं। श्री वर्द्धमान जी महाभयानक रोग उत्पन्न हो जाने पर भी उसे वेदनीय कर्म का फल जान कर औषधि की इच्छा तक न करते थे। १७. तृणस्पर्श परीषह-नंगे पाँव चलते हुए कंङ्कर या कांटादि भी चुभ जाय तो श्री वर्द्धमान महावीर उसे भी शान्तिचित्त सहन करते थे। १८. मल परीषह-शरीर पर धूल लग जाने या किसी ने राख, मिट्टी, रेत आदि उन के शरीर पर डाल दिया तो भी उसका खेद न करके श्री वर्द्धमान तप में लीन रहते थे। १६. अविनय परीषह-जहां हम संसारी जीव थोड़ा सा भी आदर सत्कार में कमी रह जाने पर महा दुःखी होते हैं, वीर स्वामी चार ज्ञान के धारी महा ज्ञानवान , महाधर्मात्मा तथा महातपस्वी और.ऋद्धियों के स्वामी होने पर भी कोई उन का सत्कार न करे तो चारित्र मोहनीय कर्म का फल जान कर वे किसी प्रकार का खेद न करते थे। २० प्रज्ञा परीषह-जहां हम थोड़ी सी बात पर भी अधिक मान कर बैठते हैं वहां महाज्ञानवान् , महातपस्वी, महाउत्तम कुल ३१० ]
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