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के शिरोमणी, होने पर भी श्री महावीर स्वामी किसी प्रकार का मान न करते थे। २१. अज्ञान परीषह-वर्षों तक कठोर तपस्या करने पर भी केवल ज्ञान (Omniscience) की प्राप्ति न होने से वे इस की प्राप्ति में शंका न करते थे बल्कि यह विश्वास रखते हुए कि मेरा ज्ञानावर्णी कर्मरूपी इंधन इतना अधिक है कि यह कठोर तपस्या भी उसको अभी तक भस्म न कर सकी, अपने कर्मों की निर्जरा के लिये और अधिक कठोर तप करते थे। २२ प्रदर्शन परीषह-जहां हम थोड़ा सा भी धर्म पालने से अधिक संसारी सुखां की अभिलाषा करते हैं और उन की तुरन्त प्राप्ति न होने पर उस में शंका करने लगते हैं, वहां श्री वर्धमान महावीर बारह वर्ष तक सच्चा सुख न मिलने से धर्म के महत्व में शंका न करते थे। उन्हें विश्वास था कि कर्मों का नाश हो जाने पर अविनाशक सुखों की प्राप्ति आप से आप अवश्य हो जायेगी।
वीर-उपवास भगवान महावीर ने बारह वर्ष से भी अधिक महाकठिन तप किया। इस दीर्घकाल में उन्होंने केवल ३४६ दिन ही पारण किया तथा सभी उपवास निर्जल ही थे।
पं० अनूपशर्मा : वर्द्धमान ( ज्ञानपीठ काशी ) पृ० ३० । वीर स्वामी ने सांसारिक पदार्थों का राग-द्वेष और मोहममता तो त्याग ही दो थी, परन्तु उन्होंने शरीर का मोह भी इतना त्याग दिया था कि आहार तक से भी अधिक रुचि न थी।
आहार के लिए नगरी में जाने से पहले ऐसी प्रतिज्ञा' कर लेते थे कि यदि अमुक विधि से आहार पानी मिला तो ग्रहण करेंगे वरन्
१, वृत्तिपरिसंख्यान नाम का तीसरा व हिरङ्ग तप ।
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