________________
राजा तथा बड़े बड़े सेठ और सेठ वृषभसेन स्वयं महीनों से ललचाई आंखों से वीर स्वामी के आहार के निमित्त पडघाहने को खड़े रहे, परन्तु भगवान् तो लोककल्याण के लिये योगी हुए थे। उन्होंने अपने उदाहरण से लोक को यह पाठ पढ़ाया कि वह पतित से घृणा न कर', जो अपनी कमजोरी तथा जबरदस्ती करने से धर्मपद तक से गिर गये हों, उन को भी दोबारा धर्म पर लगाना जैन धर्म की मुख्यता है।
सत्य की विजय हुई । चन्दना जी का शीलब्रत कब खाली जा सकता था ? महारानी मृगावती ने सुना तो वह महाभाग्य चन्दना जी को बधाई देने आई । बन्धन में पड़ी हुई दासी का यह सौभाग्य ? यह तो लोक के लिये ईर्ष्या की वस्तु थी । क्योंकि लोक तो उसे दासी ही जानता था। भगवान महावीर ने मुह से नहीं, बल्कि अपने चरित्र से चन्दना का उद्धार करके दास-दासी अथवा गुलामी का अन्त करने का आदर्श उपस्थित किया। महारानी मृगावती ने उसे देखा तो उसे अपनी आंखों पर विश्वास न आया वह तो उसकी छोटी बहन थी, उसकी प्रसन्नता का पार न था वह चन्दना जी को अपने साथ राजमहल में ले गई । माता पिताके पास दूत भेना वे सब वर्षों से बिछड़ी हुई चन्दना जी से मिल कर बहुत खुश हुये। चन्दना जी ने अपने उद्धार पर संतोष की सांस ली जरूर, परन्तु उसने संसार की ओर देखा तो दुनिया में उस जैसी दुखिया बहुत दिखाई पड़ों । आखिरकार जब भगवान् महावीर को केवल ज्ञान प्राप्त होगया तो चन्दना जी ने स्त्री जाति को संसारी दुःखों से निकाल कर मोक्ष मार्ग पर लगाने तथा अपने आत्मिक कल्याण के लिये जिन दीक्षा लेली । १-२. सग्यग्दर्शन के आठ अङ्गों में से स्थितिकरण नामक छठा अङ्ग । ३. कामताप्रसाद : भगवान् महावीर, पृ० ६७ । ४. वीरसङ्घ, खण्ड २ ।
[ ३१७
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com