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नहीं । वे अपनी इस कठिन प्रतिज्ञा को किसी के सन्मुख भी न करते थे। अनेक बार ऐसा हुआ कि तीन-तीन, चार-चार दिन के बाद आहार को उठे और राजा, प्रजा सभी महास्वादिष्ट भोजन कराने को उनकी प्रतीक्षा में अपने दरवाजों पर खड़े रहे परन्तु विधिपूर्वक आहार न मिलने पर वह बिना आहार जल लिए जङ्गल में वापस लौट आये। ऐसे अवसरों पर अपने अन्तराय कर्म का फल जान कर हृदय में खेद किये बिना हो वह फिर तप में लीन हो जाया करते थे। ___ एक बार कोशाम्बरी' के जङ्गल में महावीर स्वामी तप कर रहे थे कि उन्होंने प्रतिज्ञा की-आहार किसी राज कन्या के हाथ से लूगा, उस राज कन्या का सिर मुडा हुआ हो, वे दासी की अवस्था में कैद हो और आहार में कोदों के दाने दे। देखिये श्री वर्द्धमान महावीर की प्रतिज्ञा कितनी कठोर हैं। कन्या राजकुमारी हो परन्तु उसकी अवस्था दासी की हो और सिर मुडा हो, यदि किसी एक बात की भी कमी रह गई तो आहार-पानी दोनों का त्याग । वीर स्वामी अनेक बार आहार को उठे परन्तु विधि पूर्वक आहार न हो सका। यहां तक कि आहार-पानी लिये उन्हें छः मास हो गये।
चन्दना-उद्धार विशाली के राजा चेटक की एक पुत्री चन्दना देवी नाम की अपनी सखियों के साथ बागीचे में क्रीड़ा कर रही थी । उसकी सुन्दरता को देख, एक विद्याधर उसे जबर्दस्ती उठा कर लेगया और अपने साथ विवाह करना चाहा । शीलवती चन्दना जी उसके वश में न आई तो उसने उसे एक भयानक जङ्गल में छोड़ दिया जहाँ १. इलाहावाद का प्राचीन नाम । २. परमानन्द शास्त्री। ३१२ ]
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