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थी । चौराहे पर लाकर चन्दना जी को नीलाम करना शुरू कर दिया । इनके रूप और जवानी को देख कर एक वेश्या ने चन्दना जी को अपने काम की वस्तु जान कर दो हजार अशर्फियों' में मोल ले ली । जन्दना जी ने पूछा, माता जी आप कौन हैं ? मुझ दुखिया को इतना अधिक मूल्य देकर क्यों खरीदा ? वेश्या ने उत्तर दिया—“चन्दना ! तू चिन्ता न कर, अब तेरी मुसीबतों के दिन समाप्त होगए । मैं तुझे सर से पांवों तक सोने और हीरे जवाहरातों से लाद दूंगी । स्वादिष्ट भोजन और सुन्दर वस्त्र पहनने को दूरंगी ।" चन्दना जी उसकी बातों को परख गई और उसके साथ जाने से इन्कार कर दिया । वेश्या जबरदस्ती चन्दना जी को घसीटने लगी, कि तू मेरी दासी है, मैंने तुझे दो हजार अशर्फियों में खरीदा है। इस खींचातानी में अनेक लोगों को भीड़ वहां हो गई । उसी भीड़ में से एक नौजवान आगे बढ़ा और वेश्या को अशर्फियों की दो थेलियां देकर बोला - "खबरदार ! इस महासती के अपने नापाक हाथ मत लगाना " । और बड़े मीठे शब्दों में चन्दना जी से कहा कि तुम मेरी धर्म की पुत्री हो, मेरे साथ मेरे मकान पर चलो ।
ये उपकारी नौजवान कौशाम्बी नगरी के प्रसिद्ध सेठ वृषभसेन थे, जो बड़े धर्मात्मा और सज्जन थे । सेठ जी दूसरी दासियों से अधिक चन्दना जी का ध्यान रखते थे । चन्दना जी सेठ जी की स्त्री से भी अधिक रूपवती, गुणवती और बुद्धिमती थी । यह देख कर उनकी स्त्री ईर्ष्याग्नि से जलने लगी और झूठा कलंक लगाकर उसके अतिसुन्दर, काली नागिन के समान बालों को कटवा कर सिर मुंडवा दिया और बन्दीखाने में डाल दिया । खाने को कोढ़ों के दाने देने लगी। ऐसी दुखी दशा को भी चंदना
१. जैन वीराङ्गनाएँ, ( कामताप्रसाद) पृ० १२ ।
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