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होगये । उन्होंने अपने केशों का भी लौंच कर डाला और २८ मूलगुण ग्रहण करके पत्थर की शिला पर “ॐ नमः सिद्धेभ्यः। 3 कह कर उत्तर की ओर मुह करके ध्यान में लीन होगये । जिसको अपने अवधिज्ञान से विचार कर स्वर्गों के देवों ने श्री वर्द्धमान् महावीर का तप कल्याणक बड़े उत्साह से मनाया । इसी ज्ञातखण्ड नाम के बन में तपस्या करते हुये उनको चौथे प्रकार का मनःपर्यय ज्ञान भी प्राप्त होगया था।
वीर का प्रथम आहार जिस प्रकार बड़ का छोटा सा बीज बो देने में भी बहत बड़ा बृक्ष उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार पात्र को दिया हुआ थोड़ा सा भी दान बहुत उत्तम तथा मनबांछित फल की उत्पत्ति करनेवाला है। दान के फल से मिथ्यादृष्टि को भोग-भूमि के सुख मिलते हैं और सम्यग् दृष्टि स्वर्गों के सुख भोगता हुआ परम्परा से मोक्ष पाता है। तीर्थकर भगवान का प्रथम पारण करने वाला तद्भव मोक्षगामी होना
-श्रावक-धर्म-संग्रह पृ० १७१ । ? Lord Mabavira being a 'genius Suyambuddha' required
no teacher. Paying obeisance to 'siddha', Lord Mabayira Himself observed the Dharma of Sramanas. (a) Uttra Puran. P. 610. (b) Jain Suttra Vol. I. P. 76-78.
(c) Jain Hostel Magzine, Allahabad (January 1938) P.9. २. श्रावक-धर्म-संग्रह (वीर सेवा मन्दिर सरसावा) पृ० २५ । 3-8. Mabavira took off even cloth and became absobutely
naked and uncovered. He turned to the North and uttering "Salutation to the Siddhas” uprooted with his own hands flve tufts of hair from bis head and adopted the order of homeless monks.
-Prof.Dr.H.S. Bhattacharya : Lord Mahavira. P.24.
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