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जीव आठों कर्मों को काट कर मोक्ष (Salvation) प्राप्त करके सच्चा सुख और आत्मिक शान्ति प्राप्त कर सकता है। ___इस प्रकार बारह भावना भाने से श्री वर्द्धमान महावीर की संसारी पदार्थों से रही-सही मोह-ममता भी नष्ट हो गई । संसार उन्हें महादःखों की खान और धोखे की टट्री दिखाई देने लगा। उन्होंने अपने माता-पिता से प्रार्थना की कि जब तक कर्मरूपी इन्धन तप रूपी अग्नि में भस्म नहीं होगा, आत्मिक शान्ति रूपी रसायन की प्राप्ति नहीं हो सकती। इस लिये तप करने के लिये जिन दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दीजिये। पिता जी ने कहा"क्षत्री धर्मः परमोधर्म" राज्य करना ही क्षत्रियों का धर्म है। वीर स्वामी ने उत्तर में कहा-"छः खण्ड का राज्य करने वाले भरत सम्राट आज कहाँ है ?" और भरत सम्राट पर विजय प्राप्त करने वाले श्री बाहुबलि योद्धा आज कहां ? इन्द्र को जीतने वाला, कैलाश पर्वत को हिला देने वाला म्लेच्छों और राक्षसों का अधिपति रावण आज कहाँ ? और ऐसे महायोद्धा रावण को भी जीतने वाले श्री रामचन्द्र जी आज कहाँ ? मैं संसारी उत्तमोत्तम वस्तुओं का धारी नारायण हुआ। छः खण्डों का स्वामी चक्रवर्ती हुआ । परन्तु आवागमन से मुक्त न हो सका। राज सुख तो क्षण भर का है । पृथ्वी पर हरी घास पर ओस के समान क्षणिक है ।" पिता जी ने कहा माता को तुम्हारा कितना मोह है ? वीर स्वामी ने उत्तर दिया- "मैंने अनादि काल से अनन्तानन्त जन्म धारे, अनेक जन्म के मेरे अनेक माता-पिता थे, वे आज कहां ? संसार में कोई ऐसा जीव नहीं है, कि जिस किसी से किसी जन्म में कुछ न कुछ सम्बन्ध न रहा हो।" माता त्रिशला देवी ने कहा कि बन में रीछ, भगेरे, सांप, शेर आदि १. श्री आदिनाथ पुराण । २-४. पद्मपुराण ।
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