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कौनसा शुभ दिन होगा कि हम स्वर्ग के देव मनुष्य जन्म धार कर आपके समान संसार को त्याग कर तप करेंगे।"
वीर स्वामी के माता-पिता की भी स्तुति करके लौकातिदेवों ने उनसे कहा कि आपका बुद्धिमान पुत्र तारनतरण जहाज है, जो स्वयं इस दुख भरे भव सागर से पार होगा और दूसरों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखा कर पार उतारेगा। आपके लिये आज से बढ़कर और कौनसा शुभ दिन होगा ? धन्य है ऐसे भाग्यशाली माता-पिता को कि जिनके सुपुत्र ने पाप रूपी अन्धकार के नाश करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है । देवों के इस प्रकार समझाने से उनका मोहान्धकार नष्ट हो गया और उन्होंने बड़े हर्ष के साथ वीर स्वामी को जिन-दीक्षा लेने की आज्ञा दे दी।
वीर-त्याग कोई इष्टवियोगी विलखे, कोई अनिष्टसंयोगी। कोई दोन-दरिद्री दीखे, कोई तन का रोगी । किसही घर कलिहारी नारी, भाई कहीं बैरी होवै । कोई पुत्र बिन झुरै, कोई मरै तब रोवै ॥ जो संसार विष सुख होता, तीर्थङ्कर क्यों त्यागे। काहे को शिव साधन करते, संयम सों अनुरागे॥
-चक्रवर्ती सम्राट श्री बज्रनाभि : वैराग्यभावना जहाँ रावण जैसा विद्याधरों का स्वामी एक स्त्री की अभिलाषा में तीन खण्ड का राज्य नष्ट करदे, भीष्मपितामह के पिता जैसे वीर कामवासना के वश होकर एक मछियारे की नीच जाति कन्या से विवाह करालें, जहां मगध देश के सम्राट श्रेणिक बिम्बसार के पिता उपश्रेणिक काम के वश होकर, यमदण्ड नाम के जंगली भील की पुत्री तिलकमती से विवाह करालें, जहां विश्वामित्र ऋषि जैसे
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