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तप रही थी, शरीर को झुलसाने वाली गरम लूयें चल रही थीं, सूरज का तपत से शरीर पीन में तर होरहा था । मरीचि उस समय प्यास की परिषय का सहन न कर सका, इमलिये दिगम्बर पद का त्याग कर उसने वृत्री की छाल पहन ली लम्बी जटा रख ली । कंद, मूल फल खाने लगा और यह विचार कर के कि जैसे श्री ऋपभदेव के हजारों शिष्य हैं, उसने कपिल शदि अपने भी बहुत मे गिप्य बना कर सांख्य मत का प्रचार करना प्रारम्भ कर निका' । संसारी पदार्थों की अधिक मोह-ममता त्यागने के कारण मृत्यु के बाद वह ब्रह्म नाम के पाँचवें स्वग में देव हुआ।
ब्राह्मण-पुत्र स्वर्ग से आकर मैं अयोध्या के कपिल ब्राह्मण की काली नाम को स्त्री से जटिल नाम का पुत्र हुआ। बड़ा होकर परिव्राजक सांख्य-माधु होगया । संसारी वस्तुओं का त्यागने का कैसा सुन्दर फल प्राप्त होता है ! मृत्यु होने पर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। ___ भोग भोगने के बाद इमी भारतवर्ष के स्थूणागार नामके नगर में भारद्वाज नामक ब्राह्मण की स्त्री पुष्पदन्ता के पुष्पमित्र नाम का पुत्र हु।। वहाँ भी परिव्राजक का साधु होकर सांख्य मत का
१. एक बंगाली ३रिष्टर ने 'प्रैक्टिकल पाथ' ( Pracrical Path ) नाम के ग्रन्थ
में लिखा है कि ऋषभदेव का नाती मरीचि प्रकृतिवादी था और वेद उसके तत्वानुसार होने के कारण ही ऋग्वेद आदि ग्रन्थों की ख्याति उनके ज्ञान द्वारा हुई है। फलतः मरोन्त्री ऋषि के स्तोत्र, वेद. पुराण आदि ग्रन्थों में है और स्थान- ान पर तेन तीर्थंकरों का उल्लेख पाया जाता है । -स्वामी विरूक्ष वडिया, धर्मभूषण, पंडित. वेदतीर्थ, विद्यानिधि, एम० ए० प्रोफेसर संस्कृत कालेज इन्दौर : जैन धर्म मीमांसा ।
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