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लगे' । देव जो भयानक सर्प का रूप धारण करके परीक्षा करने आया था, वीर की वोरता और निर्भयता को देख कर आश्चर्य करने लगा। अपना असली रूप प्रकट करके उसने श्री वर्द्धमान जी को नमस्कार किया और कहा कि तुम वीर नहीं बल्कि 'महावीर' हो ।
वीर की निर्भयता One day Mahavira saw an elephant, which was mad with fury with juice, rushing. All shocked and frightened on the sight of the impending danger. Without losing a moment, Mahavira faced the danger squarely, went towards the elephant, caught hold of his trunk with his strong hands, mounted his back atonce. --Amar Chand: Mahavira (J.M. Banglore) P.4.
श्री वर्द्धमान महावीर बड़े दयालु और परोपकारी थे। एक दिन उन्होंने सुना कि एक मस्त हाथी प्रजा को कष्ट दे रहा है, बड़े २ महावतों और योद्धाओं के वश में नहीं आता, सैकड़ों आदमी उस ने पांव के नीचे कुचल कर मार दिये। सुनते ही श्री वर्द्धमान जी के हृदय में अभयदान का भाव जाग्रत हुआ। लोगों ने रोका कि हाथी बड़ा भयानक है, परन्तु वह निर्भय होकर हाथी के निकट गये। हाथी ने सूड उठा कर उन पर भी
आक्रमण किया, लेकिन श्री वर्द्धमान ने उसकी सूड को पकड़ कर उस के ऊपर चढ़ गए और बात की बात में उस खूनी मस्त हाथी को काबू में कर लिया । ऐसे अतिवीर बालक थे वह ।
snake and fearlessly holding it in his bands began to handle it quite playfully. -Prof. Dr. H. S. Bhatta
charya: Lord Mahavira. (J. Mitar Mandal) P. II. १.२. उत्तर पुराण, ७४. २०५। ३. (i) संक्षिप्त जैन इतिहास (सूरत) भा० २, खंड १. पृ० ५२ ।
(ii) कामता प्रसाद : भगवान् महावीर पृ० ७५॥ २५२ ]
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