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मुनि घर-बार तथा स्त्री-पुत्र मित्र आदि को त्याग कर जंगलों में क्यों कठोर तपस्या किया करते' ? धर्म के नाम पर पशु-हिंसा वास्तव में बुरी है । यह भगवान महावीर की ही शिक्षा का फल है कि धर्म के नाम पर होने वाले यज्ञों का अन्त हुआ और पशुओं के वलिदान के स्थान पर निजी दुर्भावनाओं का वलिदान होने लगा।
शूद्रों से छूत-छात Mahavira's church was open not only to the noble Aryan, but to low-born sudra and even to the alien, deeply despised in India the 'Malechha',
__ -Dr. Bulher : Essay on the Jainas. शूद्रों के साथ उस समय पशुओं जैसा व्यवहार होता था, उनको सुसंस्कृत शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार न था, वे बिचारे यज्ञ का प्रसाद पाने के भी योग्य न समझे जाते थे। व्रत ग्रहण करने की तो एक बड़ी बात है धर्म का शब्द उनके
यदि प्राणिवधात् धर्मः स्वर्गश्च खलु जायते । संमार मोचकानान्तु कुतः स्वर्गाभिधास्यते" ॥-मत्स्यपुराण, मांसाहारविचार
भा० २, पृ० २८ । अर्थात्-यदि प्राणियों की हिंसा करना धर्म हो और उससे स्वर्ग मिलता हो
तो संसार को छोड़ देने वाले त्यागियों को कैसे और कहाँ से स्वर्ग मिलेगा ? i Scarifice of animals in the name of religion is a rempant
of barbarism. -Mahatma Gandhi : Humanitarian Out-look ( South
__Indian Humanitarian League. Madras) P 31. ३-४, Anekant Vol. XI P. 95-102. ५-६. अनेकान्त, भाग १, पृ० ७। ७-८. "न शुदाय मतिर्दद्यान्नोच्छिष्टं न हविष्कतम् ।
न चासोपदिशेद्धर्म न चास्य व्रतमादिशेत् ॥ १४ ॥-वाशिष्टधर्मसूत्रम् २५८ ]
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