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श्वेताम्बरीय प्रसिद्र मुनि श्री चौथमल जी महाराज ने अपने 'भगवान महावीर का आदर्श जीवन'' के पृ० १६१ पर जो भगवान् महावीर को जन्म कुण्डली दो है उसी के आधार पर श्री ऐल० ए० फल्टेन साहब ने ज्यातिष की दृष्टि से भी यही सिद्ध किया कि भगवान महावीर का विवाह नहीं हुआ बल्कि वे बालब्रह्मचारी थे।
पिछले टीकाकार ‘कमार प्रव्रजित का अर्थ 'राजपद नहीं पाये हुए' ऐसा करते हैं, परन्तु 'आवश्यकनियुक्ति का भाव ऐसा नहीं मालूम होता।
श्वेताम्बर ग्रन्थकार महावीर को विवाहित मानते हैं और उसका मूलाधार 'कल्पसूत्र है । कल्पसूत्र के किसी सूत्र में महावीर के गृहस्थ आश्रम का अथवा उनकी भार्या यशोदा का वर्णन हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुआ ।
___ कछ भी हो इतना तो निश्चित् है कि महावीर के अविवाहित होने की दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता बिलकुल निराधार नहीं हैं।"
श्वताम्बर मुनि श्री कल्याणविजय जी महाराजः श्रमण भ० महावीर (श्री क० वि० शास्त्र संग्रह समिति जालोर, मारवाड़) पृ० १२ । १. चौथमल जी का यह प्रसिद्ध ग्रन्थ श्वेताम्बर सम्प्रदाय की प्रसिद्ध सस्था
'श्री जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति रतलाम' ने विक्रम सं० १९८६ में
प्रकाशित किया है। २. इस जन्म कुण्डली को, 'वीर जन्म' खण्ड २ में देखिये । 3. The Svetambara Jains hold that Lord Mahavira was
married and had a daughter, while Digambera School asserts with definiteness that Lord Mahavira was not at all married. His Janam-kundli as given in this book, is admitted by Svetambaras, according to which under the rules of Astrology also he is proved to be un-married:पत्नीभावे यदा राहुः पापयुग्मेन वीक्षितः । पत्नीयोगस्तदा न स्यात् "
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