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अर्थ अविवाहित अर्थात् ब्रह्मचारी ही है', जैसा कि स्वयं श्वेताम्बरीय मुनि श्री कल्याणविजय जी भी स्वीकार करते हैं कि भगवान महावीर के आववाहित होने की दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता बिलकुल निराधार नहीं है ?
१ "स्वयं श्वेताम्बरी प्राचीन ग्रन्थों, 'कल्पगत्र' और 'आचाराङ्गमत्र' में भगवान्
महावीर के विवाह का उल्लेख नहीं है। श्वेताम्बरीय 'आवश्यक नियक्ति' में स्पष्ट लिखा है कि भगवान् महावीर स्त्री-पाणिग्रहण और राज्याभिषेक से रहित कुमारावस्था में ही दीक्षित हुए थे। (नयत्थिाभिसेआ कुमारविवासंमि पव्वइया) अतएव वल्लभीनगर में जिस समय श्वे० आगमग्रन्थ देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण द्वारा संशोधित और सस्कारित किए गए थे, उस समय प्राचीन आचार्यों की नामावली चूर्णि और टीकाओं में विवाह की बात बढ़ाई गई सन्भव दीखती है । उस समय गुजरात देश में बौद्धों की संख्या काफी थी। वल्लभी राजाओं का आश्रय पाकर श्वे. जैनाचार्य अपने धर्म का प्रसार कर रहे थे। बौद्धों को अपने धर्म में सुगमता से दीक्षित करने के लिए उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने के लिये उन्होंने अपने आगमग्रन्थों का सङ्कलन बौद्ध ग्रन्थों के आधार से किया प्रतीत होता है । बौद्ध यात्री ह्य, न्त्सॉंग ने अपने यात्रा विवरण (पृ० १४२ ) में स्पष्ट लिखा है कि श्वेतपटधारी जैनियों ने बद्ध-ग्रन्थों से बहुत सी बात लेकर अपने शास्त्र रचे हैं । पाश्चात्य विद्वान् भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सम्भवतः श्वेताम्वरों ने श्री महावीर जी का जीवन वृत्तान्त म० गौतमबुद्ध के जीवन चरित्र के आधार से लिखा है । (बुल्हर, इण्डियन सेक्ट ऑफ दी जैन्स पृ० ४५) "ललित विस्तार' और 'निदान कथा" नामक बौद्ध ग्रन्थों में जैसा चरित्र गौतम बुद्ध का दिया है, उससे श्वेताम्बरों द्वारा वर्णित भ० महावीर के चरित्र में कई बातों में सादृश्य है। कैमरेज हिस्ट्री ऑफ इंडिया पृ० १५६ ) इस दशा में दिगम्बर जैनियों की मान्यता समीचीन विदित होती है और यह ठीक है कि महावीर जी बालब्रह्मचारी थे।'
-कामताप्रसाद ः भगवान् महावीर पृ० ७६-८१ । २. "दिगम्बर सम्प्रदाय महावीर को अविवाहित मानता है जिसका मूलाधार
शायद श्वेताम्बर सम्प्रदाय सम्मत 'आवश्यकनियुक्ति है। उसमें जिन पांच तीर्थकरों को 'कुमार प्रवजित' कहा है, उनमें महावीर भी एक हैं। यद्यपि
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