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फिर धमतीर्थ की स्थापना करना।" राजकुमार वर्द्धमान जी ने कहा-- "मां! देखती हो, कुछ लोग भोग में कितने अन्धे हो रहे हैं ? पर उपकारता के लिये समाज में स्थान नहीं है ! आत्मिक धर्म को भूले हुए हैं। स्त्री जाति को योग्य सन्मान प्राप्त नहीं है। शूद्रों के लिये धर्म सुनना पाप बताया जाता है। स्वाद के बश हिंसक यज्ञ होते हैं । संसार इन्द्रियों का दास बना हुआ है। तो क्या मैं भी उनकी भांति भ्रान्ति में पडू' ? मां की ममता भी वर्द्धमान जी की कर्तव्य दृढ़ता के सन्मुख क्षीण हो गई।
दिगम्बरीय सम्प्रदाय के अनुसार श्री वर्धमान महावीर सारी उम्र ब्रह्मचारी रहे, परन्तु श्वेताम्बरी सम्प्रदाय इन का यशोदा से विवाह होना बताता है। श्री वर्धमान के ब्रह्मचारी होने या न होने से उनको विशेषता या गुणों में कोई कमी नहीं पड़ती। अनेक तीर्थर ऐसे हुए जिन्होंने विवाह कराया, परन्तु निष्पक्ष विद्वानों के ऐतिहासिक रूप से विचार करने के लिये दोनों सम्प्रदायों के प्रमाण देना उचित है।
पद्मपुराण' हरिवंशपुराण और तिलोयपएणत्ती' नाम के दिगम्बरीय ग्रन्थ बताते हैं कि २४ तीर्थकरों में श्री से बासुपूज्य,
१-२, 'अहिंसा वाणी'. वर्ष २, पृ० ५। ३. वासुपूज्यो महावीरो मल्लिः पार्थो यदुक्रमः । 'कुमारा' निर्गता गेहात् पृथिवीपतयोऽपरे ॥
-पद्मपुराण २०-६७। ४. निष्क्रान्तिर्वासुपूज्यस्य मल्लेर्नेमिजिनान्त्ययोः । पञ्चानां तु कुमारराख्यां राज्ञां शेषजिनेशिनाम् ।।
-हरिवंशपराण ६०-२१४| ५. णेमी मल्ली वीरो 'कुमारकालं' मि वासुपज्यो ये। पासो विव गहिदतवो सेसजिणां रज्ज चरिमंमि ॥
-तिलोयपरणात्ती ४, ६०, ७२ !
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