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भगवान महावीर के समय भारत की सामाजिक स्थिति भी बड़ी भयानक थी' । मानव-स्वभाव की कोई कदर न थी | हिंसा, परिग्रह, अनाचार और दुराचार का बोल बाला था। खुदगर्जी और मतलब-परस्ती इतने जोरों पर थी कि भाई अपने भाई के पेट में खंजर चभोने में भय न खता था । स्त्रियों का कोई आदर-सत्कार न था, उनके लिये "न स्त्री स्वातन्त्रमर्हति" जैसी कठोर आज्ञायें थीं । वह केवल भोग की सामग्री, विलास की वस्तु, पुरुष की सम्पत्ति अथवा बच्चा जनने की मशीन मात्र रह गई थी । स्त्रियों को धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार न था । अपने निजी स्वाथे के वश होकर उत्तम से उत्तम रीतिरिवाज नष्ट कर दिये गये थे । किस में शक्ति थी कि धर्म के ठेकेदारों के विरुद्ध प्रभावशाली आवाज़ उठा सके ? भगवान् महावीर ने ही ऐसी बिगड़ी दशा में समस्त कुरीतियों को नष्ट करके सुख और शान्ति की स्थापना की ।
१. ज्ञानोदय. भा० २, पृ० ६५५ । २-३. ज्ञानोदय, भाग २, पृ० ६७३ । ४-५. हमारा उत्थान और पतन, पृ० ३३ । ६. अनेकान्त, वर्ष ११, पृ० १००। ७. Megasthenes also said, "The Brahmans do not communi
cate a knowledge of philosopby to their wives " But Mabavira took a highly rational attitude in tbis matter and permitted the inclusion of women into His SANGHA, and this step marked a revolutionary improvement of their status in Society.
-Dr. Bool Chand : Lord Mahavira (JCRS. 2.) P. 15. ८. अनेकान्त, वर्ष ११, पृ० १०० ।
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