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पूर्व-जन्म जो सत्पुरुषों की कथा तथा उनके पूर्व जन्मों को पढ़ते हैं, कहते हैं, विश्वासपूर्वक सुनते हैं, उनमें अनुराग रखते हैं, इसमें सन्देह नहीं है कि उनका पाप दूर होकर अवश्य पुण्य का उपाजन होता है । श्री कृष्ण जी ने भ० नेमिनाथ बाइसवें तीर्थंकर और महाराजा श्रेणिक ने भ० महावीर चोबीसवें तीर्थंकर के शमोसरण में महापुरुषों की कथाओं को विश्वासपूर्वक सुन कर इतन विशेष पुण्य का उपार्जन किया कि जिनके पुण्य फल से वे आने वाले यज्ञ में स्वयं तीर्थंकर भगवान् होंगे।
-श्री गौतम गन्धर्व : पद्मपुराण, पर्व १।
मांसाहारी भील एक दिन महावीर स्वामी एकान्त में विचार कर रहे थे, कि यह संसार क्या है ? मैं कौन था ? क्या हुआ? अब क्या हूँ ? अनादि काल से कितनी बार जन्म-मरण हुआ ? उन्होंने अवधिज्ञान से विचारा कि एक समय मेरा जीव जम्बूदीप के विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश में पुण्डरीकिणी नाम के नगर के निकट मधुक नाम के बन में पुरुरवा नाम का मांसाहारी भीलों का सरदार था, कालिका पत्नी थी, पशुओं का शिकार करके मांस खाता था, एक दिन रास्ता भूलकर श्री सागरसेन नाम के मुनि उस जंगल में आ निकले । दूर से उनकी आंत्रों की चमक देख हिरन का भ्रम हुआ, झट तीर कमान उठा उनकी ओर निशाना लगाया ही था कि कालिका ने कहा कि यह हिरन नहीं, बनदेवता मालूम होते हैं। वे दानों मुनिराज के पास गये।
मुनिराज ने उपदेश दिया कि संसार में मनुष्य-जन्म पाना बड़ा दुर्लभ है । इसे पा कर भी मिट्टी में मिल जाने वाले शरीर का दास २७० ]
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