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नाम से प्रसिद्ध हुए । श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में उनका उल्लेख 'महामाहन्' और 'न्यायमुनि'२ के नाम से हुआ । हिन्दू शास्त्रों में इनका कथन 'अहन्' , 'महामान्य'' , 'माहण'५ आदि नामों से हुआ है । वीर स्वामी अपने जीवन-काल में ही 'अहन्त', 'सर्वज्ञ', 'तीर्थकर' कहलाते थे ।
वीर-जन्म के समय भारत की अवस्था
धर्म के नाम पर हिंसामयो यज्ञ
I am grieved to learn that it is proposed to offer animal sacrifice in Temples, I think that such sacrifices are barbarous and they degrade the name of religion. I trust the authorities will pay heed to the sentiments of the cultured people and refrain from such sacrifices. -Pt. Jawaharlal Nehru: Humanitaion Outlook P. 31.
मूलतः यज्ञ का मतलब था अपने स्वार्थों को बलिदान करना , अपने जीवन को दूसरों के हित के लिये कुर्वान करना । अपनी सम्पत्ति तथा जीवन को देश और समाज के लिये अर्पण कर देना' । परन्तु खुदगर्ज और लालची लोगों ने अपने स्वार्थ की कुर्बानी के स्थान पर बेचारे गरीब पशुओं की कुर्बानियों के यज्ञ चालू कर दिये । वैदिक सिद्धान्त के स्थान पर न जाने कहाँ से "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" के सिद्धान्त-वाक्य घड़ दिये' १-२. उपासक शास्त्र, पृ० ६। ३-५. ऐशियाटिक रीसचिज भा० ३ पृ० ११३-११४ ।
६. जयभगवान स्वरूपः इतिहास में भगवान् महावीर का स्थान, पृ० १०। ७-१०. श्री रणवीर जी : दैनिक उदू "मिलाप' दीवाली एडिशन १६५० पृ० ५। ११. पं० नवलकिशोर सम्पादक 'संसार' : शानोदय भाग २, पृ० २७३ ।
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