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अनन्तमति एक नारी ही तो थी, जिसके साथ विद्या, सम्पत्ति, और राज- सुख का लालच देकर विद्याधर विवाह करना चाहता था, परन्तु वह संसारी सुखों की लालसा में न आई' । चन्दना जी भी एक नारी थी, जिनको आकाश से उड़ते हुए विमान से नीचे लटका दिया और धमकी दी कि नीचे गिरा कर मार दी जावेगी, वरना मेरी इच्छाओं को पूर्ण करो । परन्तु उसने धर्म के सम्मुख जान की परवाह न की । विजयकुमारी एक नारी ही थी, जिसके माता पिता ने एक जैन से उसका विवाह करना चाहा क्योंकि वह बहुत मालदार था, परन्तु कन्या ने संसारी सुखों के लिये धर्मको त्यागना उचित न जाना और अपने माता-पिता से स्पष्ट कह दिया:"सीमो ज़र तो चीज क्या है धर्म के बदले मुझे ।
मैं न लू गर सल्तनत भी, सारे आलम की मिले ॥" —रोशन, पानीपती माता-पिता न माने, उसकी सगाई अजैन धनवान् से कर दो तो व संसार त्याग कर, साधुका होगई ।
मुनि हो या श्रावक, दोनों प्रकार के धर्म पालने में स्त्री समाज मनुष्यों से आगे रहा है । भगवान् महावीर के समवशरण में जहां मुनि और साधु १४ हजार थे, वहां अर्जिकाएँ और साधुकाएँ ३६ हजार थीं, और जहाँ श्रावक एक लाख थे. वहां श्राविकाएँ ३ लाख थीं ।
स्त्री के गुण एक स्त्री के मुख से क्या अच्छे लगें ? परन्तु इतिहास बताता है कि सामाजिक, राजनैतिक, लौकिक तथा धार्मिक हर क्षेत्र, हर स्थान पर स्त्री का स्थान मनुष्य से बढ़-चढ़ कर रहा है ।
१. आराधनाकथा कोश (दि० जैन पुस्तकालय, सूरत) पृ० ७०-७४ । २. जैन वीराङ्गनाएँ, (दि० जैन पुस्तकालय, सूरत) पृ० ७३ ।
३. आत्मधर्म (सोनगढ़, सौराष्ट्र) भा० १ पृ० १७४ ।
४. जैन-सिद्धान्त-भास्कर (आरा, विहार) भा० ८ पृ० ६१ । १३० ]
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