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हज़रत ईसा से ५६६ वर्षों' पहले आपाढ शुक्ला ६ की रात्रि को जब तीन चौथाई गत जा चुकी थी, माता त्रिशलादेवी मीठी नींद में आनन्दविभोर थी कि उनको १६ स्वप्न दिखाई दिये । जिस प्रकार इन्द्राणी अपने ठाट-बाट के साथ इंद्र के पास जाती है उसी तरह सुबह होते ही त्रिशलादेवी अपनी सहेलियों सहित राजदरबार में गई। राजा सिद्धार्थ ने रानी को आते देखकर बड़े आदर से उसका स्वागत किया, और अपने पास सिंहासन पर बैठाया । रानी ने अपने १६ स्वप्न कह कर उनका फल पूछा । राजा बड़े बुद्धिमान थे । उन्होंने अपने निमित्तज्ञान से विचार कर उत्तर में कहा- “(१) हाथी देखने का फल यह है कि तुम एक बड़े भाग्यशाली पुत्र की माता बनने वाली हो। (२) बैल देखने का फल यह है कि वह धर्मरूपी रथ के चलाने वाला होगा। (३) सिंह देखने का फल यह है कि वह अनन्तानन्त शक्ति का धारक होगा । (४) लक्ष्मी देखने का फल यह है कि वह मोक्षरूपी लक्ष्मी प्राप्त करने वाला होगा । (५) सुगन्धित फूलों की माला देखने का फल यह है कि उसकी प्रसिद्धि समस्त संसार में फैलेगी। (६) पूर्णचन्द्र देखने का फल यह है कि वह मोहरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाला होगा। (७) सूर्य के देखने का फल यह है कि वह सम्पूर्ण ज्ञान का प्रकाश करेगा। (८ युगल मछली के देखने का फल यह है कि वह बड़ा भाग्यशाली होगा। (६) जल के भरे कलश देखने का फल यह है कि वह सुख व शान्ति के प्यासों की प्यास बुझायेगा। (१०) सरोवर देखने का यह फल है कि वह १००८ श्रेष्ठ लक्षणों का धारी होगा। (११) लहराते हुए समुद्र के देखने का फल यह है कि वह समुद्र के समान गम्भीर और गहरा
१. साधु टी० एल० वास्वानीः भ० महावीर का आदर्श जीवन, पृ० ५। . २. श्री महावीर पुराण, जिन वाणी प्रचारक का कलकत्ता, पृ० ५५-५६ ।
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