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संसार के कल्याण का माग जैन धर्म
जैनियों ने लोक सेवा की भावना से भारत में अपना एक अच्छा स्थान बना लिया है । उनके द्वारा देश में कला
और उद्योग की काफी उन्नति हुई है। उनके धर्म और समाज सेवा के कार्य सार्वजनिक हित की भावना से ही होते रहे हैं और उनके कार्यों से जनता के सभी वर्गों ने लाभ उठाया है। माननीय श्री गोबिन्दवल्लभ पन्त
जैन धर्म देश का बहुत प्राचीन धर्म है । इसके सिद्धान्त महान् हैं, और उन सिद्धान्तों का मूल्य उद्धार, अहिंसा और सत्य है। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य के जिन सिद्धान्तों को लेकर जीवन भर कार्य किया वही सिद्धान्त जैन धर्म की प्रमुख वस्तु है । जैन धर्म के प्रतिष्ठापकों तथा महावीर स्वामी ने अहिंसा के कारण ही सबको प्रेरणा दी थी।
जैनियों की ओर से कितनी ही संस्थायें खुली हुई हैं उनकी विशेषता यह है कि सब ही बिना किसी भेद भाव के उनसे लाभ उठाते हैं, यह उनकी सार्वजनिक सेवाओं का ही फल है।
जैनधर्म के आदर्श बहुत ऊँचे हैं। उनसे ही संसार का कल्याण हो सकता है । जैनधर्म तो करुणा-प्रधान धर्म है। इसलिये जैन चींटी तक की भी रक्षा करने में प्रयत्नशील है । दया के लिये हर प्रकार का कष्ट सहन करते हैं। उनमें मनुष्यों के प्रति असमानता के भाव नहीं हो सकते।
मैं आशा करता हूँ कि देश और व्यापार में जैनियों का जो महत्त्वपूर्ण भाग है वह सदा रहेगा।
-जैन सन्देश आगरा १२-२-१६५१ पृ०२
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