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वीर का तप त्याग और अहिंसा
मुझे भगवान् महावीर
के जीवन में तीन बातें बहुत सुन्दर नज़र आती हैं. - त्याग तप श्रहिंसा भगवान् महावीर के बाद लोग इतने प्रमादवश हो गये कि त्याग-तप अहिंसा उनको कायरता नजर आने लगी। मैंने जैन ग्रन्थों का स्वाध्याय किया है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार में मुझे तीन श्लोक नजर पड़े जिन
में गृहस्थी के लिये स्पष्ट तौर पर श्रीयुत् महात्मा आनन्द सरस्वती केवल एक प्रकार की संकल्पी हिंसा का त्याग बताया गया है जो राग द्व ेष के भावों से जान बूझकर की जावे । उद्यमी हिंसा जो व्यापार में होती है, आरम्भी हिंसा जो घरेलु कार्यों पर होती है तथा विरोधी हिंसा जो अपने या दूसरे के बचाव माल, धन, इज्जत की रक्षा या देश सेवा में होती है। इन तीनों प्रकार की हिंसा का गृहस्थ को त्याग नहीं बताया । वेद भगवान् का उपदेश भी यही है कि किसी के साथ राग-द्व ेष से बात न करो। महर्षि दयानंद के जीवन में यही तीन बातें रोशन हैं:-त्याग, तप, परोपकार ।
भ० महावीर के जीवन के भी यही तीन गुण बहुत प्यारे लगते हैं। आज के संसार को इनकी बहुत जरूरत है, लेकिन
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