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अलौकिक महापुरुष भगवान महावीर
डा० अनेस्ट लायमेन जर्मनी भगवान महावीर अलौकिक महापुरुष थे। वे तपस्वियों में आदर्श, विचारकों में महान् , आत्म-विकास में अग्रसर दर्शनकार और उस समय की प्रचलित सभी विद्याओं में पारङ्गत थे। उन्होंने अपनी तपस्या के बल से उन विद्याओं को रचनात्मक रूप देकर जन समूह के समक्ष उपस्थित किया था। छः द्रव्य धर्मास्तिकाय (Fulerum of Motion) अधर्मास्तिकाय (Fulerum of Stationariness) काल ('l ime) आकाश ( Space ) पुद्गल (Matter) और जीव (Jiva) और उनका स्वरूप तत्व विद्या (Oatology) विश्वविद्या (Kosomology) दृश्य और अदृश्य जीवों का स्वरूप जीवविद्या (Biology) बताया । चैतन्य रूप आत्मा का उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकासस्वरूप मानस शास्त्र (Psychology) आदि विद्याओं को उन्होंने रचनात्मक रूप देकर जनता के सम्मुख उपस्थित किया। इस प्रकार वीर केवल साधु अथवा तपस्वी ही नहीं थे बल्कि वे प्रकृति के अभ्यासक थे और उन्होंने विद्वत्तापूर्ण निर्णय दिया।
-भगवान महावीर का आदर्श जीवन पृष्ठ १३-१४ ।
जैन धर्म की विशेषता जर्मनी के महान् विद्वान् डा० जोन्ह सहर्टेल एम० ए०, पी. एच.डी. मैं अपने देशवासियों को दिखलाऊँगा कि कैसे उत्तम तत्व और विचार जैनधर्म में हैं । जैन साहित्य बौद्धों की अपेक्षा बहुत ही बढ़िया है । मैं जितना २ अधिक जैनधम व जैन साहित्य का ज्ञान प्राप्त करता जाता हूँ, उतना उतना ही मैं उनको अधिक प्यार करता हूँ।
-जैनधर्म प्रकाश (सूरत) पृ० ब । ११२ ]
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