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परमहंस श्री वद्धमान महावीर
हिन्दुओं ! जैनी हम से जुदा नहीं हैं हमारे ही गोस्त पोस्त हैं । उन नादानों की बातों को न सुनो जो गलती से नावाकफियत से, या तास्सुब से कहते हैं "हाथी के पाँव तले दब जाओ मगर जैन मन्दिर के अन्दर अपनी हिफाज़त न करो" इस तास्सुब और तंगदिली का
कोई ठिकाना है ? हिन्दू धर्म महात्मा श्री शिवव्रतलालजी वर्मन, एम. ए. तास्सुब का हामी नहीं है तो फिर इनसे ईर्ष्या भाव क्यों ? अगर इनके किसी ख्याल से तुम्हें माफकत नहीं हैं तो सही, कौन सब बातों में किसी से मिलता है ? तुम उनके गुणों को देखो, किसी के कहे-सुने पर न जाओ। जैन धर्म तो एक अपार समुद्र है जिस में इन्सानी हमदर्दी की लहरें जोर शोर से उठती हैं । वेदों की श्रुति 'अहिंसा परमोधर्म' यहां ही अमली सूरत अख्तयार करती हुई नजर आती है।
Shiubrat Lai Yerman
श्री महावीर स्वामी दुनिया के जबरदस्त रिफार्मर और ऊँचे दर्जे के प्रचारक हुये हैं। यह हमारी कौमी तारीख के कीमती रत्न हैं। तुम कहां ? और किन में धर्मात्मा प्राणियों की तलाश करते हो ? इनको देखो इनसे बेहतर साहिबेकमाल तुम को कहां मिलेगा ? इनमें त्याग था, वैराग था, धर्म का कमाल था । यह इन्सानी कमजोरियों से बहुत ऊँचे थे। इनका स्थान 'जिन' है जिन्होंने मोह माया, मन और काया को जीत लिया था। ये तीर्थंकर हैं।
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