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राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय जैनधर्म डा० श्री कालीदास नाग वाइस चांसलर कलकत्ता यूनिवर्सिटी
जैनधर्म किसी खास जाति या सम्प्रदाय का धर्म नहीं है बल्कि यह अन्तर्राष्ट्रीय, सार्वभौमिक तथा लोकप्रिय धर्म है ।
जैन तीर्थंकरों की महान आत्माओं ने संसार के राज्यों के जीतने की चिन्ता नहीं की थी, राज्यों को जीतना कुछ ज्यादा कठिन नहीं है, जैन तीर्थंकरों का ध्येय राज्य जीतने का नहीं है बल्कि स्वयं पर विजय प्राप्त करने का है । यही एक महान् ध्येय है, और मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है। लड़ाइयों से कुछ देर के लिये शत्रु दब जाता है, दुश्मनी का नाश नहीं होता । हिंसक युद्धों से संसार का कल्याण नहीं होता । यदि आज किसी ने महान् परिवर्तन करके दिखाया है तो वह अहिंसा सिद्धान्त ही है। हिंसा सिद्धान्त की खोज और प्राप्ति संसार के समस्त खोज़ों और प्राप्तियों से महान् है ।
यह ( Law of Grāvitation ) मनुष्य का स्वभाव है नीचे की ओर जाना । परन्तु जैन तीर्थंकरों ने सर्वप्रथम यह बताया कि अहिंसा का सिद्धान्त मनुष्य को ऊपर उठाना है ।
आज के संसार में सब का यही मत है कि अहिंसा सिद्धान्त का महात्मा बुद्ध ने आज से २५०१ वर्ष पहले प्रचार किया । किसी इतिहास के जानने वाले को इस बात का बिल्कुल ज्ञान नहीं है महात्मा बुद्ध से करोड़ों वर्ष पहले एक नहीं बल्कि अनेक जैन तीर्थंकरों ने इस हिंसा सिद्धान्त का प्रचार किया है। जैन धर्म बुद्ध धर्म से करोड़ों वर्ष पहिले का है । मैंने प्राचीन जैन क्षेत्रों
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