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कहलाने का अधिकारी नहीं है । जब मरे हुये बकरे की खाल से लोहा भस्म हो जाता है, तो जो जीवित बकरे को मार कर खाते हैं उनकी दशा क्या होगी ? जहां मांस भक्षण होता है वहां दया धर्म नहीं रह सकता । यह झूठी कल्पना है कि थोड़े से पाप कर लेने में क्या हर्ज है, क्योंकि अधिक पुण्य करके उस थोड़े से पाप को धोया जा सकता है । पवित्र ग्रंथ साहब में तो यहां तक उल्लेख है कि यदि जीवों की हत्या करना धर्म है तो अधर्म क्या है | ___ गुरु नानकदेव मांस-भक्षण के विरोधी थे। वे एक दिन घूमते हुये एक जंगल में जा निकले। वहां के लोगों ने उनसे भोजन के लिये कहा तो गुरु जी ने फरमाया :"यों नहीं तुमरो खायें कदापि, हो सब जोवन के सन्तापी । प्रथम तजो प्रामिष का खाना, करो जास हित जीवन हाना ॥"
-नानक प्रकाश पूर्वार्ध अध्याय ५५ अर्थात्-हम तुम्हारे यहां कदाचित् भोजन नहीं कर सकते, क्योंकि तुम जीव हिंसा करते हो। जब तक तुम माँस भक्षण का त्याग न करोगे, तुम्हारे जीवन का कल्याण न हो सकेगा। १. दयाभाव हृदय नहीं, ज्ञान कथा बेहद ।
ते नर नरके जायेंगे, कहे कबीर यह शब्द ।। ६. बुरा गरीब का मारना, बुरी गरीब की आह ।
मुये बकरे की खाल से, लोहा भस्म हो जाय ।। ३ सुच्चम करके चौका पाया, जीव मारके मांस चढ़ाया।
जस रसोई चढाया मास, दया धर्म का होया नास ॥ ४. तिल भर मछली खायके, करोड़ गऊ दे दान |
काशी करवत ले मरो, तो भी नरक निदान । ५. जीव बघहु सुधरम कर, थापह अधरम कहकत भाई । आपस कउ मुनवर कर थापउ, का कउ कह कसाई ।।
-ग्रन्थ साहब कबीर रागमारू पृ० ११०३ ।
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