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इस पर हज़रत साहब ने फरमाया कि अच्छा हम जामिन हैं शिकारी ने कहा कि यदि यह वापिस न आई तो तुम्हें इसकी जगह शिकारे अजल बनना पड़ेगा । इस पर आप मुस्कराये और
फरमाया :
शिकारी ने हज़रत मोहम्मद साहब की जमानत हर हिरणी को छोड़ दिया, वह भागती हुई अपने बच्चों के पास गई और उन्हें दूध पिलाकर कहा- यह हमारी तुम्हारी आखरी मुलाकात है, एक शिकारी ने मुझे पकड़ लिया था, एक महापुरुष ने अपने जीवन की ज़मानत पर छुड़वाया है"। बच्चों ने कहा" - माता हम पर जैसे बीतेगो, देख लेंगे, तू बचनहारी न हो" । हिरणी ने वापिस आकर हज़रत मोहम्मद साहब को धन्यवाद दिया और शिकारी से कहा कि अब मैं ज़िबे होने को तैयार हूँ । शिकारी पर उसके शब्दों का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने सदा के लिये हिरणी को छोड़ दिया' । वास्तव में हज़रत मोहम्मद साहब बड़े दयालु थे उन्होंने हिंसा. धर्म का प्रचार किया ।
यह तो उनके जीवन का केवल एक ही दृष्टान्त है । यदि उनके जीवन की खोज की जाये तो किसी को भी उनके 'अहिंसा प्रेमी' होने में सन्देह न रहे' ।
"इस वक्त यही शर्त सही, जिसको खुदादे । हम जान लगाते हैं, तू ईमान लगादे || "
१.
नाये हमदर्दी |
२. " जैन धर्म और इस्लाम" खण्ड ३ |
• Ahinsa in Islam' Vol. I.
३.
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