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श्री समन्तभद्र आचार्य की वीर-श्रद्धाञ्जलि
देवागम नभोयान चामरादिविभूतयः । मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ १ ॥
-प्राप्त मीमांसा
अर्थात्-देवों का आगमन, आकाश में गमन और चामरादिक (दिव्य चमर, छत्र, सिंहासन, चामण्डलादिक) विभूतियों का अस्तित्व तो मायावियों में-इन्द्रजालियों में भी पाया जाता है, इनके कारण हम आपको महान् नहीं मानते और न इस कारण से आप की कोई खास महत्ता या बड़ाई हो है। ____ 'भगवान् महावीर' की महत्ता और बड़ाई तो उनके मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण अन्तराय नामक कर्मों का नाश करके परम शान्ति को लिए हुये शुद्धि तथा शक्ति की पराकाष्ठा को पहुँचने और ब्रह्म-पथ का-अहिंसात्मक मोक्षमार्ग का, नेतृत्व ग्रहण करने में है। अथवा यों कहिये कि आत्मोद्धार के साथ-साथ लोक की सच्ची सेवा बजाने में है ।
त्वं शुद्धिशक्त्योरुदयस्य काष्ठां तुला व्यतीतां जिनशांति रूपाम् । अवापिथ ब्रह्मपथस्य नेता महानीतियत् प्रतिवक्तुमीशा: ॥ ४ ॥
-श्रीसमन्तभद्राचार्यः युक्त्यनुशासन ।
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