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श्री
TAMANACHAR
मानतुङ्गाचार्य
की
जिनेन्द्र-स्तुति
श्रीमानलंगाचार्य
तवाणी चारक
स्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं ब्रह्माण्डमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेक, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥२४॥
A -मानतुङ्गाचार्यः भक्तामर स्तोत्र । अर्थात्-हे श्री जिनेन्द्र भगवान् ! आप अक्षय, परम ऐश्वर्यसंयुक्त, सर्वज्ञ, योगेश्वर, सर्वव्यापक, देवों के देव महादेव, अनन्तानन्त गुणों की खान, कर्मरूपी मल से पवित्र, शुद्धचित्त रूप, कामदेव का नाश करने वाले, अर्हन्त तथा तीनों लोक और तीनों काल के समस्त पदार्थों को एक साथ देखने और जानने वाले केवल ज्ञानी हो । मैं आपकी बार बार वन्दना करता हूँ।
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