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दया' (Ahinsa ) समता, अपरिग्रह आदि धर्मों की साधना की थी ।
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यह निश्चय हो रहा है कि हज़रत ईसा जब १३ वर्ष के हुये और उनके घर वालों ने उनके विवाह के लिये मजबूर किया तो वह घर छोड़कर कुछ सौदागरों के साथ सिन्ध के रास्ते भारत में चले आये थे । वह जन्म से ही बड़े विचारक, सत्य के खोजी और सांसारिक भोग-विलासों से उदासीन थे । भारत में आकर वह बहुत दिनों तक जैन साधुओं के साथ रहे, " प्रभु ईसा ने अपने आचार-विचार की मूल शिक्षा जैन साधुओं से प्राप्त की थी ।
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महात्मा ईसा ने जिस पैलस्टाइन में जाकर ४० दिन के उपवास द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किया था | वह प्रसिद्ध यहूदी मि०
१. a.—“What ever you do not wish your neighbour to do unto you, don't unto him,
b. Thou shalt no: build thy happiness on the misery of another'-Christ.
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"Towards your fellow creature be not hostile. All beings hate pain, therefore don't kill them."-Christ. प्रभु ईसा मसीह का कहना है कि सूई के नाके से ऊँट का निकल जाना मुमकिन है परन्तु अधिक परिग्रह की इच्छा रखने वालों का आत्मिक कल्याण होना मुमकिन नहीं ।
" इतिहास में भगवान् महावीर का स्थान" पृ० १६ ।
पं० सुन्दरलाल जी : हजरत ईसा और ईसाई धर्म, पृ० २२ ।
पं० बलभेद्र जी सम्पादक जैन संदेश' आगरा |
पं० सुन्दरसाल जी : हजरत ईसा और ईसाई धर्म, पृ १६२ । इतिहास में भगवान् महावीर का स्थान, पृ० १६ /
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