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अरज्ज (वि.) न० ब०] जिसमें रस्सियां न लगी हों, जंगल में आवास, वासिन् (वि.) जंगल में रहने रस्सियों से विरहित; (नपुं०) कारागार ।
वाला (पुं०) अरण्यवासी, वानप्रस्थी,-विलपितम, अरणिः (पु०स्त्री०) [स्त्री०-णी ] शमी की लकड़ी ----विलापः (°ण्ये ) = रुदितम्-श्वन (पुं०) जंगली
का टुकड़ा, जिसके घर्षण से यज्ञ के अवसर पर अग्नि कुत्ता, भेड़िया,-सभा जंगल की कचहरी । जलाई जाती है, आग उत्पन्न करने वाली लकडी-- अरण्यकम् [ अरण्य+कन् ] जंगल, बन । तु०, पंच० १।२१६,--णी (द्वि० व०) यज्ञाग्नि प्रज्व- अरण्यानिः-नी (स्त्री०) [अरण्य-+आनुक डीप च] एक लित करने के लिए लकड़ी की दो समिधाएँ,-णि: 1. बड़ा जंगल, या बोहड़ मरुभूमि, विस्तृत उजाड़ । सूर्य, २ आग 3. फलीता, चकमक पत्थर ।
अरत (वि.) [न० त०] 1. मन्द, विरक्त, अनासक्त 2. अरण्यम् (कई बार पुं० भी) [ अर्यते गम्यते शेषे वयसि
असंतुष्ट, तुष्टिरहित, पराङमुख, तम् अमैथुन । ऋ-|-अन्य ] जंगल, बन, उजाड़, ---प्रियानाशे कृत्स्नं
सम०-अप (वि.) मैथुन करने में न लजाने वाला किल जगदरण्यं हि भवति उत्तर०६।३०, माता यस्य
(--पः) कुत्ता (गलियों में बिना किसी प्रकार की गहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी, अरण्यं तेन गन्तव्यं
लज्जा के मैथुन करने वाला)। यथारण्यं तथा गहन्- --चाण० ४४, जंगली, जंगल में ।
चा ४४ जंगली जंगल में अरति (वि०) [न० ब०] 1. असन्तुष्ट 2. सुस्त, निढाल, उत्पन्न (यदि समस्त पद का प्रथम खण्ड हो),
-तिः (स्त्री०) [ न० त०] 1. आमोद-प्रमोद का 'बीजम् जंगली बीज, इसी प्रकार मार्जार, मषकः ।
अभाव (प्रेम की प्रबल उत्कण्ठा से पैदा होने वाला), सम०---अध्यक्षः बन की देख रेख करने वाला,
-स्वाभीष्टवस्त्वलोभेन चेतसो या जवस्थिति: अरतिः राजिक,---अयनम्,--यानम् जंगल में चले जाना,
सा--सा0द0 2. पीड़ा, कष्ट 3. चिन्ता, खेद, बेचैनी, वानप्रस्थ लेना,-ओकस,-सद् (वि.) 1. अरण्यवासी,
क्षोभ, -संधत्ते भृशमरति हि सद्वियोग:-कि० ५।५१, जंगल में रहने वाला----वैक्लव्यं मम ताबदीदशमपि
4. असन्तोष, संतोषाभाव, 5. निढालपना, सुस्ती 6. स्नेहादरण्यौकसः-श० ४।५, 2. विशेषतः वह जिसने
एक पैत्तिक रोग। अपना परिवार छोड़ दिया हो और वानप्रस्थी हो गया। अरनिः (पुं० स्त्री०) [ऋ+कत्नि-रनिः, स नास्ति यत्र] हो, जंगल में रहने वाला,-कदली जंगली केला,--- गजः 1. कुहनी, कई बार मुक्का, 2. एक हाथ की माप, कहनी जंगली हाथी (जो पालतू न हो),-चटकः जंगली चिड़िया
से कानी उंगली के छोर तक की माप, लंबाई नापने -चंद्रिका (शा०) जंगल में चन्द्रमा का प्रकाश
का पैमाना-अरनिस्तु निष्कनिष्ठेन मष्टिना-अमर', (आलं०) निरर्थक शृंगार या आभूषण, ऐसा बनाव- मध्यांगुलिकर्परयोर्मध्ये प्रामाणिक: करः, बद्धमुष्टिकरो सिंगार जिसे कोई देखने-सराहने वाला न हो, इसी
रनिररत्निः सकनिष्ठिक: । हला०, कि० १८०६, । लिए मल्लिनाथ- स्त्रीणां प्रियालोकफलो हि वेष:- | अरनिकः [ अरनि-+-कन् ] कुहनी। कु० ७१२२, पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं--अन्यथा- | अरम् (अव्य०) [ ऋ+अम् ] 1. तेजी से, निकट, पास ही, ऽरण्यचन्द्रिका स्यादिति भावः:--चर (°ण्येचर भी). उपस्थित 2. तत्परता के साथ। - -जीव (वि.) जंगली,—ज (वि.) बन्य,-धर्मः
| अरमण, अरममाण (वि०) [न० त०] 1. जो सुखकर न जंगली अवस्था या प्रथा, जंगली स्वभाव,-तथारण्य- |
हो, असन्तोषजनक, अरुचिकर 2. अविराम, अनवरत । धर्माद्वियोज्य ग्राम्यधर्म नियोजितः -पंच० १,- अररम् [ ऋ+अरन् ] किवाड़ का दिला-सरभसमरराणि नपति:---राज (द)- राजः जंगल का स्वामी, सिंह द्रागपावृत्य महावी०६।२७.(-र:-री, भी)-चञ्चपो ब्याध का विशेषण, इसी प्रकार---अरण्यानां कोटिविपाटिताररपुटो यास्याम्यहं पञ्जरात्-भामि० पतिः,-पंडितः 'वन में विद्वान्' (आलं.) मूर्ख पुरुष
११५८, 2. ढक्कन, म्यान,-रः आरी। जो वन में ही (जहाँ कोई सुनने-टोकने वाला नहीं
अररे (अव्य०) [अर-रा+के] (क) बड़े उतावलेपन होता) अपना पांडित्य प्रकट कर सके;-भव (वि.)
(ख) तथा घृणा और अवज्ञा को प्रकट करने वाला जंगल में उत्पन्न, जंगली, -मक्षिका डांस,-यानम्
संबोधन बोधक अव्यय-अररे महाराजं प्रति कुतः जंगल में चले जाना, --रक्षकः अरण्यपाल,-रुदितम्
क्षत्रियाः--गण। (ण्ये ) जंगल में रोना, अरण्यरोदन, (आलं०) अरविन्दम् [ अरान् चक्राङ्गानीव पत्राणि विन्दते--अर+ ऐसा रोना जिसे कोई सुनने वाला न हो, निष्फल । विन्द+श] 1. कमल (कामदेव के पांच बाणों में से कथन ---अरण्ये मया रुदितम्–श. २, प्रोक्तं श्रद्धावि- एक ---दे० 'पंचबाण' के नीचे)-शक्यमरविन्दसुरभि:--- हीनस्य अरण्यरुदितोपमम्---पंच० ११३९३, तदलमधु- श०३।६, यह सूर्य-कमल है.-तु०सूर्यांशुभिभिन्नमिवारनारण्यरुदितै: -अमरु० ७६,-वायसः जंगली कौवा, विन्दम्-कु० ११३२; स्थल, चरण , मुख' आदि पहाड़ी कौवा,-वासः,-समाश्रयः जंगल में चले जाना, । 2. लाल या नील कमल,-द: 1. सारस पक्षी, 2.
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