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अयथावत् (अव्य०) गलती से, अनुचितरीति से।
-- मलम लोहे का जंग, इसी प्रकार रजः, रसः, अयनम् [ अय् + ल्युट् ] 1. जाना, हिलना, चलना, जैसा कि | -मुखः लोहे की नोक लगा हुआ बाण-भेत्स्यत्यजः कुम्भ
र'मायणम्' में 2. राह, पथ, मार्ग, सड़क—अगस्त्य- मयोमुखेन रघु० ५।५५,—कु: 1. लोहे की बी 2. चिह्लादयनात्-रघु० १६६४४, 3. स्थान, जगह, घर, लोहे की कील, नोकदार लोहे की छड़-रघु०१२।९५, 4. प्रवेशद्वार, व्यूह में प्रवेश करने का मार्ग अयनेषु च -शूलम् 1. लोहे का भाला 2. प्रबल साधन, तीक्ष्ण सर्वेषु यथाभागमवस्थिता:-भग० ११११ 5. सूर्य का उपाय-सिद्धा०, (तु० आयःलिक: काव्य० १०, अय:मार्ग, सूर्य की विषुवत् रेखा से उत्तर या दक्षिण की शूलेन अन्विच्छतीत्यायःशूलिकः), हृदय (वि.) ओर गति, 6. (अत एव) इस मार्ग का अवधि-काल, लौह-हृदय, कठोर, निष्ठुर, सुहृदयो हृदयः प्रतिगर्जछ: मास, एक अयनबिंदु से दूसरे अयनबिंदु तक जाने ताम् रघु०९।९। का समय---दे० उत्तरायण, दक्षिणायन, 7. विषुव और | अयस्मय (अयोमय) (नपुं० [स्त्री०-यी] [अयस्+ अयनसंबंधी बिन्दु,—दक्षिणम् अयनम-शिशिरऋतु का मयट ] लोहे या और किसी धातु का बना हुआ। अयन; उत्तरम् अयनम्-ग्रीष्म अयन 8. अन्तिममुक्ति । अयाचित (वि०) [न० त०] न मांगा हुआ, अप्रार्थित ..-नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय-श्वेता० । सम०-काल: (भिक्षा, आहार आदि)-अमतं स्याद याचितम्-मनु० दोनों अयनों के मध्य की अवधि (दोनों अयनों का ४५.---तम् अप्रार्थित भिक्षा । सम०-उपनत, उपसंधिकाल),-वृत्तम् ग्रहणरेखा।
स्थित बिना निमंत्रण या प्रार्थना के पहुंचा हुआ,अयन्त्रित (वि०) [न० त०] अनियंत्रित, जिसको रोका न अयाचितोपस्थितमंबु केवलम्---कु० ५।२२,-वृत्तिः जा सके, स्वेच्छाचारी, मनमानी करने वाला।
बिना मांगी या अप्रार्थित भिक्षा पर जीवित रहना। अयमित (वि.) [न० त०] 1. अनियंत्रित, 2. जिस पर अयाज्य (वि.) [न० त०] 1. ( व्यक्ति) जिसके लिए
प्रतिबंध न लगा हो 3. जिसकी काट-छांट न की गई यज्ञ नहीं करना चाहिए, या जो यज्ञ करने का
हो, असज्जित (जैसा कि नाखून आदि),-मेघ० ९२।। अधिकारी न हो (शुद्रादिक ), 2. (अत एव ) जातिअयशस् (वि.) [न० ब० ] यशोहीन, बदनाम, अकीर्तिकर बहिष्कृत, पतित 3. यज्ञ करने का अनधिकारी।
('अयशस्क') भी इसी अर्थ में, (नपुं०-शः) सम-याजनम्,---संयाज्यम् उस व्यक्ति के लिए बदनामी, अपकीति, कुख्याति, अवमान, निन्दा-अयशो यज्ञ करना जिसके लिए किसी को यज्ञ नहीं करना महदाप्नोति—मनु० ८।१२८, किमयशो ननु घोरमतः चाहिए-मनु० ३।६५, १११६० । परम् -उत्तर० ३।२७, स्वभावलोलेत्ययशः प्रमृष्टम्-- अयात (वि०)[न० त०] न गया हुआ, । सम०-याम रघु०६।४१, । सम-कर (वि.) (स्त्री०-री) (वि०) जो बासी न हो, ताजा, जो उपयोग में आने बदनाम, कलंकी।
के कारण जीर्ण-शीर्ण न हआ हो,-मं च यौवनम् अयशस्य (वि०) [न० त०] बदनाम, कलंकी।
- दश० १२३, ताजा, खिला हुआ। अयस् (नपुं०) [इ+असुन] 1. लोहा,-अभितप्तमयोऽपि | अयायाथिक (वि.) [स्त्री०-की][न त०] 1. जो
मार्दवं भजते कैव कथा शरीरिष--रघु०८।४३, 2. सत्य न हो, न्याय विरुद्ध, अनुचित 2. अवास्तविक, इस्पात, 3. सोना, 4. धातु, 5. अगर नामक लकड़ी। असंगत, वेतुका । (पुं०) अग्नि । सम०--अग्रस,---अग्रकम् हथौड़ा, | अयाथार्थ्यम् [ न० त०] 1. अयोग्यता, अशुद्धता 2. बेतुकामूसल,-कांड: 1. लोहे का बाण 2. बढ़िया लोहा 3. लोहे पन, असंगतता। का बड़ा परिमाण,-कान्तः (अयस्कान्त:) 1. चुंबक, | अयानम् [न० त०] 1. न जाना, न हिलना-डुलना, ठहरना, चंबक पत्थर,-शम्भोर्यतध्वमाक्रष्टुमयस्कान्तेन लोह- टिकना 2. स्वभाव । वत,-कु० ११५९ स चकर्ष पररमात्तदयस्कान्त इवायसम् | अयि ( अव्य०) [इ+इनि ] 1. मित्रादिकों के प्रति नम्र -रघु० १७१६३, उत्तर० ४।२१, 2. मूल्यवान् पत्थर, संवोधन, ओह, ए, अरे आदि सामान्य संबोधन बोधक मणिः चुंबक पत्थर-अयस्कान्तमणिशलाकेव लोहधातु- अवाय, -अयि विवेकविश्रांतमभिहितम् --मालवि० मन्तःकरणमाकृष्टवती-मा० १,-कारः लहार, लोहे का १, अयि भो महर्षिपुत्र-श० ७, अयि विद्युत्प्रमदानां काम करने वाला, कीटम् लोहे का जंग या मुर्चा-कुंभः त्वमपि च दुःखं न जानासि-मृच्छ० ५।३२,दे० लोहे का बर्तन, इंजिन का वायलर आदि, इसी प्रकार भामि० ११५, ११,४४ । 2. प्रार्थना या अनु-.-पात्रम्,-घनः लोहे का हथौड़ा--अयोधनेनाय रोध बोधक अव्यय --- अयि संप्रति देहि दर्शनम्-कू० इवाभितप्तम् --रधु०१४।३३, चूर्णम् लोहे का चूरा, ४।२८, प्रोत्साहन तथा अनुनय के अर्थ में भी-अयि ---जालम लोहे की जाली,-दंडः लोहे की मद्गर,-धातुः मन्दस्मितमधुरं वदनं तन्वंगि यदि मनाक्कूरुष-भामिक लोहधातु-उत्तर० ४।२१, प्रतिमा लोहे की मूर्ति, । २११५०, 3. सामान्य सानुग्रह-पृच्छा द्योक अव्ययत
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