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-अयि जीवितनाथ जीवसि--कु० ४।३,---अयीदमेवं । मातलि:----श० ६ (ख) उदासी, खिन्नता-अये देवपरिहासः--५।६२ ।
पादपद्मोपजीविनोऽवस्थेयम्-मुद्रा० २, शोक (ग) अयुक्त (वि.) [न० त०] 1. जो जुता न हो, या जिस क्रोध (घ) खलबली, क्षोभ (ङ) प्रत्यास्मरण (च)
पर जीन न कसा गया हो, 2. जो मिला हुआ न हो, भय (छ) थकाबट । संबद्ध या संयुक्त न हो 3. जो भक्त या धार्मिक न हो. अयोगः [न० त०] 1. अलगाव, वियोग, अन्तराल 2 ध्यान रहित, उपेक्षाशील 4. अभ्याससापेक्ष, अनभ्यस्त, अयोग्यता, अनौचित्य, असंगति 3. अनचित संबंध 4. जो नियुक्त न हुआ हो, बुद्धि, चार 5. अयोग्य, विधुर, अनुपस्थित प्रेमी या पति 5. हथौड़ा (अयोय अनुचित, अनुपयुक्त---अयुक्तोऽयं निर्देश:--पा० ४१२। तथा अयोधन) 6. अरुचि । ६४, महा० 6. झूठ, गलत । सम-कृत् अनुचित | अयोगवः (स्त्री०- वा,--वी) [अय इव कठिना गौर्वाणी या गलत काम करने वाला,-पवार्थः शब्द का वह यस्य--ब० स० नि० अच् | शूद्र पिता और वैश्य अर्थ जो दिया न गया हो, जैसे कि 'अपि' शब्द,--रूप माता की सन्तान दे० आयोगव ! (वि०) असंगत, अनुपयुक्त,-अयुक्तरूप किमतः परं अयोग्य (वि.) [ न० त०] जो योग्य न हो, अनु. वद-कु० ५।५९।
पयुक्त, निरर्थवः । अयुग-गल (वि.) [न० त०] 1. पृथक्, अकेला 2. ऊबड़- | अयोध्य ( वि०) [ न० त०] जिस पर आक्रमण न
खाबड़, विषम । सम-अचिस् (पुं०)आग,-नेत्रः- किया जा सके, जिसका मुकाबला न किया जा सके, नयनः,- शरः दे० अयुग्म के अन्तर्गत, सप्तिः सात ---अद्यायोध्या महाबाहो अयोध्या प्रतिभाति नः घोड़ों वाला, सूर्य ।
-रामा०,---ध्या सरयू नदी के तट पर स्थित वर्तमान अयुगपद् (अव्य०) [न० त०] 1. सब एक साथ नहीं,
अयोध्या नगरी, रघुवंश में उत्पन्न सूर्यवंशी राजाओं क्रमश: यथाक्रम, । सम०-ग्रहणम् क्रमपूर्वक सम-|
की राजधानी। झना,-भावः अनुक्रम, आनुक्रमिकता ।
अयोनि (वि.)[न०ब०] 1. अजन्मा, नित्य,—जगद्योनिरयोअयुग्म ( वि०) [ न० त०] 1. अकेला, न्यारा 2. निराला, निस्त्वम्- कु० २१९ 2. जो कोख से उत्पन्न न हो,
विषम, (संख्या),। सम०-छदः,—-पत्रः सप्तपर्ण अधर्म अथवा अवैध रूप से उत्पन्न,--नि: (स्त्री०) नामक पौधा, -नयनः, नेत्रः,-लोचनः विषम (३) (न० त०] जो योनि न हो,--निः ब्रह्मा, शिव, ।
आँखों वाला, शिव-कु० ३।५११६९, बाणः,-शरः । सम०,--ज,-जन्मन् (वि०) जो जरायु से न जन्म। विषम (५) बाणों वाला, कामदेव,-वाहः, सप्तिः हो, सामान्य जन्मपद्धति के अनुसार जिसने जन्म न सात घोड़ों वाला सूर्य ।
लिया हो-तनयाम् अयोनिजाम्-- रघु० ४८, कन्याअयुज् (वि.) [ न० त०] निराला, विषम (विप० युज् रत्नमयोनिजन्म भवतामास्ते—महावी० ११३०, ईशः
--सम)। सम०-- इषुः,-बाणः,-शरः पांच बाणों ईश्वरः शिव, (--जा)--संभवा जनक की पुत्री सीता वाला, कामदेव,-छदः=सप्तपर्णः-बबुरयुक्छद- जो कि खेत के खूड से उत्पन्न हुई थी। गुच्छसुगन्धयः----शि०६।५०,-पलाशः सप्तपलाशः, अयोगपद्यम् [ न० त०] समकालीनता का अभाव।।
-पाद,--यमकम् पहले और तीसरे पाद में भिन्न अयौगिक (वि.) [स्त्री०—की ] [न० त०] व्याकरण के अर्थों वाले एक से अक्षर रखने वाला अनुप्रास का एक नियमानसार जो शब्द व्यत्पन्न न हो।
भेद, नेत्र,-लोचन,-"-अक्ष,---शक्ति शिव। अरः [ ऋ+अच् ] पहिये के अरे या पहिये का अर्धव्यास अयुत ( वि०) [न० त०] न मिला हुआ, पृथक्कृत, (रं भी)-अरैः संधार्यते नाभिः नाभौ चाराः प्रति
असंबद्ध,--तम् दस हजार, दस सहस्र की संख्या । ष्ठिताः--पंच० ११८१, । सम... अंतर (ब० व०) सम---अध्यापकः अच्छा अध्यापक, सिद्ध (वि०) अरों का अन्तराल-विक्रम० ११४,--घट्टः, ---घट्टक: (वैशे० में) अपथक्करणीय, अन्तनिहित,---सिद्धिः 1. रहट जिसके द्वारा कुएँ से पानी निकाला जाता है, ( स्त्री० ) ऐसा प्रमाण जिससे निश्चय हो कि घटी रहट में प्रयुक्त किया जाने वाला डोल,---कृपकुछ वस्तुएं तथा मान्यताएं अपथक्करणीय, तथा मासाद्य 'टीमार्गेण सर्पस्तेनानीत:-पंच०४, 2. गहरा अन्तहित है।
कुआँ । अये (अव्यय) [+एच ] 1. संबोधनात्मक अव्यय या । अरजस्, अरज, अरजस्क (वि०) [न० ब०] 1. धूल या
संबोधन का नम्र प्रकार ( =अयि)- अये गौरीनाथ गर्द से रहित, साफ स्वच्छ (आल० भी) 2, रज या त्रिपुरहर शंभो त्रिनयन---भर्त० ६।१२३ 2. विस्मयादि वासना से मक्त 3. जिसे मासिक धर्म न होता हो, द्योतक अव्यय--(क) ओह, अये आदि अब्दों में (स्त्री०-जाः) वह कन्या जिसे अभी रजोधर्म आरंभ अनूदित आश्चर्य तथा विस्मय की भावना,-अये | नहीं हुआ।
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