________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
܀
॥३६॥
܀ ܀ ܀ ܀ ܀
-
100000०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००मकर
पअनन्दिपञ्चविंशतिका ।
वसंत तिलका कालत्रये वहिरवस्थितजातवर्षा शीतातपप्रमुखसंघटितोग्रदुःखे ।
आत्मप्रबोधविकले सकलोऽपि कायक्लेशो वृथा वृतिरिवोज्झितशालिवप्रे ॥६७॥ अर्थः-जो मुनि अपने आत्मज्ञानकी कुछभी परवा न कर वाहिरमें रहकर वर्षा शीत गर्मी तीनोंकालोंमें उत्पन्न हुवे दुःखोंको सहन करते हैं उनका उस प्रकारका दुःख सहना वैसाही निरर्थक मालूम होता है जैसाकि धान्यके कटजाने पर खेतकी बाड़ लगाना निरर्थक होता है इसलिये मुनियोंको आत्मज्ञानपर विशेष ध्यान देना चाहिये ॥ १७ ॥
शार्दूल विक्रीड़ित । सम्प्रत्यस्ति न केवली किल कलौ त्रैलोक्यचूड़ामणिः स्तवाचः परमासतेऽत्र भरतक्षेत्रे जगदुद्योतिकाः। सदरत्नत्रयधारिणो यतिवरास्तेषां समालंवनं तत्पूजा जिनवाचिपूजनमतः साक्षाजिनः पूजितः॥६८॥
अर्थः-यद्यपि इस समय इसकलिकालमें तीन लोकके पूजनीक केवली भगवान विराजमान नहीं है तोभी इस भरतक्षेत्रमें समस्त जगतको प्रकाशकरने वाली उनकेवलीभगवानकी वाणी मौजूद हैं तथा उन वाणियोंके आधार श्रेष्ट रत्नत्रयके धारी मुनि हैं इसलिये उन मुनियों की पूजनतो सरस्वती की पूजन है तथा सरस्वतीको पूजन साक्षात्केवली भगवानकी पूजन है एसा भव्यजीवोंको समझना चाहिये ॥ ६८ ॥
शार्दूल विक्रीड़ित । स्पष्टा यत्र मही तदंघिकमलैस्तत्रति सत्तीर्थतां तेभ्यस्तेपि सुराः कृताञ्जलिपुटा नित्यं नमस्कुर्वते । तन्नामस्मृतिमात्रतोऽपि जनता निष्कल्मषा जायते ये जैना यतयाश्चिदात्मानिरता ध्यानं समातन्वते॥६॥
अर्थः-जो यतीश्वर आत्मामें लीन होकर ध्यानकरते हैं उन जैनयतीश्वरों के चरणकमलोसे सृष्ट भूमि
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܢܸܕ݂܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀ ܀ ܀ ܀ ܀ ܀
For Private And Personal