________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandi
॥३५॥
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००0000000mins
-
पवनन्दिपश्चविंशतिका ।
शार्दूल विक्रीढ़ित । ते वः पान्तु मुमुक्षवः कृतरवैरब्दै रतिश्यामलेः शश्वदारि वमद्भिरधिविषयक्षारत्वदोषादिव । काले मज्जदिले पतगिरिकुले 'धावडुनीसंकुले' झंझावातविसंस्थुले तरुतले तिष्ठन्ति ये साधवः ॥६५॥
अर्थ-जिस वर्षाकालमें काले २ मेघ भयंकर शब्द करते हैं तथा समुद्रके क्षारदोषसे ही मानो जो जहाँ तहां जल बर्षाते हैं तथा जिस कालमें जमीन नीचेको धसक जाती है तथा पर्वतोसे बड़े २ पत्थर गिरते है | तथा जल की भरी हुई नदियाँ सब जगह दौड़ती फिरती हैं तथा जो वर्षाकाल वृष्टिसहित पवनसे भयंकर हो । रहा है ऐसे भयंकर वर्षाकालमें जो मोक्षाभिलाषीमुनि वृक्षोंक नीचे बैठ कर तपकरते हैं उन मुनियों के लिये नमस्कार है अर्थात् वे मुनि मेरी रक्षा करो ॥ १५ ॥ शीतकालमें खुले हुवे मैदानमें तप करनेवाले यतीश्वरोंकी स्तुति ।
शार्दूल विक्रीड़ित । म्लायत्कोकनदे गलत्पिकमदे भ्रंश्यद्भुमौघच्छदे हर्षद्रोमदरिद्रके हिमऋतावत्यन्तदुःखप्रदे । ये तिष्ठन्ति चतुष्पथे पृथुतपःसौधस्थिताःसाधवोध्यानोष्णप्रहितोग्रशीतविधुरास्ते मे विदध्युःश्रियम्॥६६
अर्थः-जिस शीतकालमें कमल कुम्हला जाते है तथा वन्दरोंका मद गल जाता है और वृक्षोंके पत्ते जल जाते है तथा जिस शीतकालमें ववरहित दरिद्रोंके शरीरपर रोमांच खडे हो जाते है और भी जो नाना प्रकारके दुःखोंका देनेवाला है ऐसे भयंकर शतिकालमें अत्यंततपस्वी तथा ध्यानरूपीअग्निसे समस्तशीतको नाश करनेवाले जो यतीश्वर खुलेमैदानमें निर्भयतासे निवास करते हैं वे यतीश्वर मुझै अविनाशी लक्ष्मी प्रदान करो॥१६॥
और भी मुनिधर्मके स्वरूपको आचार्य दिखाते है।
܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀܀
For Private And Personal