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www.kcbatirth.org पअनन्दिपश्चविंशतिका । ॥ वीतरागकी महिमाका वर्णन ॥
वसंत तिलका। वज्रे पतत्यपि भयद्रुतविश्वलोकमुक्ताध्वनि प्रशमिनो न चलन्ति योगात् । वोधप्रदीपहतमोहमहान्धकाराः सम्यग्दृशः किमुत शेषपरीषहेषु ॥ ६३ ॥ अर्थः--जिस वज्रके शब्दके भयसे चकित होकर समस्तलोक मार्गको छोड़ देते है ऐसे वज्रके गिरने पर भी जो शान्तात्मामुनि ध्यानसे कुछ भी विचलित नहीं होते तथा जिन्होंने सम्यग्ज्ञानरूपीदीपकसे समस्त मोहान्धकारको नाशकरदिया है और जो सम्यग्दर्शनके धारी हैं वे मुनि परीवहोंके जीतने में कब चलायमान हो सक्के हैं ? अर्थात् परीषह उनका कुछ भी नहीं कर सक्ती ॥ १३ ॥
॥ ग्रीष्मऋतु में पर्वतके शिखरपर ध्यानीमुनीश्वगेकी स्तुति ॥
शार्दूल विक्रीड़ित । प्रोद्यत्तिग्मकरोग्रतेजसि लसचण्डानिलोद्यदिशि स्फारीभूतसुतप्तभूमिरजसि प्रक्षीणनद्यम्भसि । ग्रीष्मे ये गुरुमेधनीभ्रशिरसि ज्योतिर्निधायोरसि ध्वान्तध्वंसकरं वसन्ति मुनयस्ते सन्तु नः श्रेयसे ॥६४॥
अर्थ:-जिस ग्रीष्मऋतु में अत्यंत तीक्ष्ण धूप पड़ती है तथा चारो दिशाओंमें भयंकर लू चलती हैं तथा जिसऋतुमें अत्यंत संतापका देनेवाला गरम रेता फैलाहुवा है तथा नदियोंका पानी सूख जाता है ऐसी भयंकर ग्रीष्मऋतुमें जोमुनि समस्त अन्धकारको नाश करनेवाली सम्यग्ज्ञानरूपी ज्योतिको अपने मनमें रखकर अत्यंत ऊंचे पहाड़की चोटीपर निवास करते हैं उन मुनियोंकलिये मेरा नमस्कार हो अर्थात् वे मुनि मेरे कल्याण के लिये होवे ॥४॥
॥ वर्षाकालमें वृक्षों के नीचे स्थित मुनियों की स्तुति ॥
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