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मूलगुणाधिकार १ ।
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अर्हेत भाषित पच्चीस सत्ताईस वा एकसौ आठ उच्छास इत्यादि परिमाणसे कहे हुए अपने अपने कालमें दया क्षमा सम्यग्दर्शन अनंतज्ञानादिचतुष्टय इत्यादि जिनगुणोंकी भावना सहित देहमें ममत्वका छोड़ना वह कायोत्सर्ग है ॥ २८ ॥
आगे केशलोंचका स्वरूप कहते हैं; - बियतियचरक्कमासे लोचो उक्कस्समज्झिमजहण्णो । सपडिक्कमणे दिवसे उववासेणेव कायव्वो ।। २९ ।। द्वित्रिचतुष्कमासे लोचः उत्कृष्टमध्यमजघन्यः । सप्रतिक्रमणे दिवसे उपवासेनैव कर्तव्यः ॥ २९ ॥ अर्थ – दो महीने तीन महीने चार महीने बाद उत्कृष्ट मध्यम जघन्यरूप व प्रतिक्रमणसहित दिनमें उपवाससहित किया गया जो अपने हाथसे मस्तक डाढी मूंछके केशोंका उपाड़ना वह लोंचनामा मूलगुण है ॥ भावार्थ – मुनियोंके पाईमात्र भी धन संग्रह नहीं है जिससे कि हजामत करावें और हिंसाका कारण समझ उस्तरा नामक शस्त्र भी नहीं रखते और दीनवृत्ति न होनेसे किसीसे दीनताकर भी क्षौर नहीं करासकते इसलिये संमूर्छनादिक जुआं लीख आदि जीवोंकी हिंसाके त्यागरूप संयम केलिये प्रतिक्रमणकर तथा उपवासकर आप ही केशलोंच करते हैं । यही लोंचनामा गुण है ॥ २९॥
आगे अचेलकपनेका स्वरूप कहते हैं:वत्थाजिणवक्केण य अहवा पत्तादिणा असंवरणं । णिग्भूसण णिग्गंथं अचेलक्कं जगदि पूज्जं ॥ ३० ॥ वस्त्राजिनवल्कैश्च अथवा पत्रादिना असंवरणं । निर्भूषणं निर्ग्रथं आचेलक्यं जगति पूज्यम् ॥ ३० ॥