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द्वादशानुप्रेक्षाधिकार ८! २७९ अर्थ-इस बोधिसे जीवादि छह द्रव्य नौ पदार्थ जाने जाते हैं इसलिये लक्षों गुणोंकर युक्त ऐसी बोधिको तुम सब काल चितवन करो ॥ ७६२ ॥ . दस दो य भावणाओ एवं संखेवदो समुदिहा। जिणवयणे दिट्ठाओ बुधजणवेरग्गजणणीओ ॥७६३॥
दश द्वे च भावना एवं संक्षेपतः समुद्दिष्टा। .. जिनवचने दृष्टा बुधजनवैराग्यजनन्यः ॥ ७६३ ॥
अर्थ-मैंने इसप्रकार संक्षेपसे ये बारह भावना कहीं हैं जो जिनवचनमें ही देखी गई हैं अन्यजगह नहीं और विवेकी पंडितोंके वैराग्यके उत्पन्न करनेवाली हैं ॥ ७६३ ॥ . . अणुवेक्खाहिं एवं जो अत्ताणं सदा विभावेदि।। सो विगदसव्वकम्मो विमलो विमलालयं लहदि ७६४ अनुप्रेक्षाभिः एवं यः आत्मानं सदा विभावयति । स विगतसर्वकर्मा विमलो विमलालयं लभते ॥ ७६४ ॥
अर्थ-इसप्रकार अनुप्रेक्षाओंकर जो पुरुष सदाकाल आत्माको भावता है वह पुरुष सबकाँरहित निर्मल हुआ निर्मल मोक्षस्थानको पाता है ॥ ७६४ ॥ झाणेहिं खवियकम्मा मोक्खग्गलमोडया विगयमोहा। ते मे तमरयमहणा तारंतु भवाहि लहुमेव ॥७६५॥ ध्यानैः क्षपितकर्माणः मोक्षार्गलमोटका विगतमोहाः । ते मे तमोरजोमथनाः तारयंतु भवात् लघु एव ॥७६५॥ अर्थ-जिनोंने ध्यानकर कर्मोंका क्षय किया है जो मोक्षकी