Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

Previous | Next

Page 447
________________ ४१० मूलाचार अर्थ-असंख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य तिर्यचोंकी उत्पत्ति मिथ्यात्वपरिणामसे ज्योतिषी देवोंमें होती है और कंदमूलादिका आहार करनेवाले तापसियोंकी उत्पत्ति उत्कृष्ट ज्योतिषियोंमें होती है ॥ ११७२॥ परिवाजगाण णियमा उक्करसं होदि वंभलोगम्हि । उक्कस्स सहस्सार ति होदि य आजीवगाण तहा ॥ परिव्राजकानां नियमात् उत्कृष्टो भवति ब्रह्मलोके । उत्कृष्टः सहस्रार इति भवति च आजीवकानां तथा ॥११७३ अर्थ-संन्यासियोंकी उत्पत्ति उत्कृष्ट ब्रह्मलोकपर्यंत हैं आजीवक साधुओं का उत्पाद उत्कृष्ट सहस्रार स्वर्गपर्यंत होता है॥११७३ तत्तो परं तु णियमा उववादो णत्थि अण्णलिंगीणं । णिग्गंथसावगाणं उववादो अचुदं जाव ॥११७४ ॥ ततः परं तु नियमात् उपपादो नास्ति अन्यलिंगानां । निग्रंथश्रावकाणां उपपादःअच्युतं यावत् ॥ ११७४ ॥ अर्थ–सहस्रारसे आगेके वर्गों में अन्यलिंगियोंका जन्म नहीं होता दिगंबर श्रावक श्राविका आर्यिकाओंका जन्म अच्युत वर्गतक होता है ॥ ११७४ ॥ जाबुवरिमगेवेजं उववादो अभवियाण उक्कस्सो। उक्कटेण तवेण दुणियमा णिग्गंथलिंगेण ।। ११७५ ॥ यावत् उपरिमौवेयं उपपादः अभव्यानां उत्कृष्टः । उत्कृष्टेन तपसा तु नियमात् निग्रंथलिंगेन ॥ ११७५ ॥ अर्थ-अभव्योंका जन्म निर्मथलिंग धारणकर उत्कृष्ट तप

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470