Book Title: Mulachar
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Anantkirti Digambar Jain Granthmala

Previous | Next

Page 452
________________ पर्याप्ति-अधिकार १२। ४१५. स्थान सूत्र चौथा चौदहगुणस्थान सूत्र पांचवां चौदह मार्गणासूत्रइन पांच सूत्रोंसे स्थानसूत्रका व्याख्यान करते हैं ॥ ११८७ ॥ गदिआदिमग्गणाओ परविदाओ य चोद्दसा चेव । एदेसिं खलु भेदा किंचि समासेण वोच्छामि॥१९८८ गत्यादिमार्गणाः प्ररूपिताश्च चतुर्दश चैव । एतेषां खलु भेदाः कियंतः समासेन वक्ष्यामि ॥११८८॥ अर्थ-गति आदि मार्गणा आगममें चौदह ही कहीं हैं इनके कुछ एक भेदोंको संक्षेपसे अब मैं कहता हूं ॥ ११८८ ॥ एइंदियादि जीवा पंचविधा भयवदा दु पण्णत्ता। पुढवीकायादीया विगला पंचेंदिया चेव ॥ ११८९॥ एकेंद्रियादयः जीवाः पंचविधा भगवता दु प्रज्ञप्ताः । पृथिवीकायादयः विकलाः पंचेंद्रिया एव ॥ ११८९ ॥ अर्थ-जिन भगवानने एकेंद्रियादि जीव संग्रहसूत्रसे पृथिवीकायादि एकेंद्री, दोइंद्री, तेइंद्री चौइंद्री, पंचेंद्रिय-इसतरह पांचप्रकार कहे हैं ॥ ११८९ ॥ संखो गोभी भमरादिया दु विगलिंदिया मुणेदव्वा । पंचेंदिया दु जलथलखचरा सुरणारयणरा य॥११९०॥ शंखो गोभी भ्रमरादयस्तु विकलेंद्रिया ज्ञातव्याः। पंचेंद्रियास्तु जलस्थलखचराः सुरनारकनराश्च ॥ ११९०॥ अर्थ-शंखादि गोपालिका आदि भोरा आदि क्रमसे दोइंद्री तेइंद्री चौइंद्री जानना और जलचर स्थलचर आकाशचर तथा देव नारकी मनुष्य-ये सब पंचेंद्रिय जानने ॥ ११९० ।। पंचय इंदियपाणा मणवचकाया दु तिण्णि बलपाणा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470