________________
पर्याप्ति - अधिकार १२ ।
१२१
किया गया है इससे यहां चार गाथा पुनरुक्त दोष के भयसे दो बार नहीं लिखे इसलिये खाध्यायवाले ९६ वेंके पत्र में देखलें ॥ आगे अल्प बहुत्वको कहते हैं;
मणुसगदी थोवा तेहिं असंखिज्जसंगुणा णिरये । तेर्हि असंखिज्जगुणा देवगदीए हवे जीवा ।। १२०७ ।। मनुष्यगतौ स्तोकाः तेभ्यः असंख्येयसंगुणा नरके । तेभ्यः असंख्येयगुणा देवगतौ भवेयुः जीवाः ॥ १२०७॥ अर्थ – मनुष्यगतिमें सबसे कम जीव ( मनुष्य ) हैं उनसे असंख्यातगुणे नारकी जीव हैं उनसे असंख्यात गुणे देवगतिमें देव हैं ॥ १२०७ ॥
तेहितोणंतगुणा सिद्धिगदीए भवंति भवरहिया । तेहितोणंतगुणा तिरयगदीए किलेसंता ॥ १२०८ ॥ तेभ्योऽनंतगुणाः सिद्धिगतौ भवंति भवरहिताः । तेभ्योऽनंतगुणाः तिर्यग्गतौ क्लिश्यंतः ॥ १२०८ ॥
अर्थ- देवोंसे अनंतगुणे सिद्धगति (मोक्ष) में संसारसे - रहित हुए सिद्ध जीव हैं । उन सिद्धोंसे भी अनंतगुणे क्लिश्यमान तिच अनंतगुणे हैं ॥ १२०८ ॥
थोबा दु तमतमाए अनंतराणंतरे दु चरमासु । होति असंखिजगुणा णारइया छासु पुढवीसु ॥ १२०९ स्तोकास्तु तमस्तमायां अनंतरानंतरे तु चरमासु । भवंति असंख्येयगुणा नारका षट्सु पृथिवीषु ।। १२०९ ॥
अर्थ — सातवें नरक में सबसे थोड़े जीव हैं उससे पूर्व पूर्वकी पहले नरकतक छह पृथिवियोंमें असंख्यात असंख्यातगुणे